मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में घोषणा की कि सभी हाईकोर्ट जजों को समान वेतन और पेंशन (Equal Salary and Pension) के अधिकार मिलने चाहिए। अदालत का मानना है कि न्यायिक स्वतंत्रता और वित्तीय समानता के सिद्धांतों का पालन करते हुए जजों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। इस निर्णय का उद्देश्य न्यायपालिका को अधिक सशक्त और समान बनाना है।
न्यायिक स्वतंत्रता के लिए समान वेतन और पेंशन की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud), जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट के सभी जजों को समान वेतन और पेंशन (Equal Salary and Pension) का लाभ मिलना चाहिए, क्योंकि सभी एक ही संवैधानिक स्तर के अधिकारी होते हैं। अदालत का मानना है कि सेवा लाभों में भेदभाव करना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
इस बेंच ने संविधान के आर्टिकल 216 का हवाला देते हुए कहा कि एक बार जब कोई व्यक्ति हाईकोर्ट में जज के रूप में नियुक्त होता है, तो वह समान रैंक का हिस्सा बन जाता है। इसीलिए, उसकी पेंशन और वेतन में कोई अंतर नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इसे न्यायिक स्वतंत्रता का एक हिस्सा माना, जिसमें हाईकोर्ट जजों के अधिकार (High Court Judges’ Rights) के अंतर्गत वित्तीय स्वतंत्रता को भी शामिल किया गया है।
पटना हाईकोर्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
यह मामला तब चर्चा में आया जब पटना हाईकोर्ट के एक जज जस्टिस रुद्र प्रकाश मिश्रा की पेंशन और वेतन से संबंधित मुद्दों पर सुनवाई हुई। जस्टिस मिश्रा को सामान्य भविष्य निधि (GPF) खाता न होने की वजह से दस महीने से वेतन नहीं मिला था। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को निर्देश दिया कि जज को लंबित सैलरी तत्काल दी जाए। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि हाईकोर्ट जजों के अधिकार (High Court Judges’ Rights) का हनन करके उनकी वित्तीय सुरक्षा में कमी नहीं की जा सकती है।
समानता का सिद्धांत और न्यायिक स्वतंत्रता की सुरक्षा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि न्यायिक और वित्तीय स्वतंत्रता के बीच गहरा संबंध है। अदालत ने इस मामले में 6 महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान दिया:
- हाईकोर्ट एक संवैधानिक संस्था है, और सभी जज संवैधानिक पदों पर होते हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 221 में यह प्रावधान है कि सभी जजों का वेतन और पेंशन समान होना चाहिए।
- एक बार नियुक्त होने के बाद सभी जज समान स्तर के माने जाते हैं।
- न्यायिक स्वतंत्रता और वित्तीय स्वतंत्रता में गहरा संबंध होता है।
- वर्तमान और सेवानिवृत्त जजों को बिना किसी भेदभाव के लाभ मिलना चाहिए।
- कोई भी भेदभाव संविधान के अनुरूप नहीं है।
इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समान वेतन और पेंशन (Equal Salary and Pension) का लाभ सभी हाईकोर्ट जजों का अधिकार है।