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मुंबई के वॉटर सिस्टम की हकीकत: झीलों में जमा गाद पर BMC का दावा और एक्सपर्ट्स की चिंता, जानें क्या है पूरा मामला

मुंबई के वॉटर सिस्टम की हकीकत: झीलों में जमा गाद पर BMC का दावा और एक्सपर्ट्स की चिंता, जानें क्या है पूरा मामला

मुंबई, भारत की फाइनेंशियल कैपिटल, अपने बिजी लाइफस्टाइल और हाई-राइज बिल्डिंग्स के लिए फेमस है। लेकिन इस बड़े शहर की लाइफलाइन है उसका पानी। और इस पानी का एक बड़ा सोर्स हैं शहर के आसपास की झीलें। लेकिन अब एक नई रिपोर्ट ने इन झीलों की हालत पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

हाल ही में, एक RTI (राइट टू इन्फॉर्मेशन) के जरिए पता चला है कि पिछले 10 सालों से मुंबई की सात बड़ी झीलों की सफाई नहीं हुई है। ये जानकारी नेटकनेक्ट फाउंडेशन ने मांगी थी। उन्हें मिले जवाब में बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (BMC) ने माना कि उन्होंने इन झीलों से गाद नहीं निकाली है।

गाद क्या होती है? ये वो मिट्टी और कचरा है जो समय के साथ पानी के नीचे जमा हो जाता है। अगर इसे समय-समय पर नहीं निकाला जाए तो ये झील की गहराई कम कर सकता है। इसका मतलब है कि झील में कम पानी भर पाएगा।

लेकिन BMC का कहना है कि इस गाद की वजह से झीलों की कैपेसिटी पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। उन्होंने अपने दावे के सपोर्ट में महाराष्ट्र इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (MERI) की एक रिपोर्ट का हवाला दिया है।

MERI की रिपोर्ट के मुताबिक, तानसा और मिडल वैतरणा बांधों में गाद की वजह से सिर्फ 0.2 परसेंट की मामूली कमी आई है। BMC ने बताया कि MERI अभी तानसा और मिडल वैतरणा झीलों का स्टडी कर रहा है। साथ ही वेहर और तुलसी झीलों की रिपोर्ट भी जल्द ही आने वाली है।

BMC ने शुक्रवार को कुछ और डिटेल्स शेयर कीं। उन्होंने बताया कि MERI की स्टडी के मुताबिक, मिडल वैतरणा झील की सालाना स्टोरेज कैपेसिटी में सिर्फ 0.244 परसेंट की कमी आई है। वहीं तानसा झील की कैपेसिटी में सिर्फ 0.116 परसेंट की कमी देखी गई है।

BMC ने ये भी बताया कि नासिक में स्थित MERI ने वेहर, तुलसी और मोडक सागर झीलों का भी सर्वे किया है। इन झीलों की रिपोर्ट जल्द ही पब्लिक की जाएगी।

लेकिन इस पूरे मामले पर एन्वायरनमेंट एक्सपर्ट्स की राय अलग है। उनका कहना है कि झीलों में गाद जमा होने से उनकी पानी स्टोर करने की कैपेसिटी पर असर पड़ सकता है। इससे पानी की सप्लाई के आंकड़े गलत हो सकते हैं।

इस बीच, BMC ने एक और क्लेम किया है। उन्होंने कहा है कि जल जीवन मिशन प्रोग्राम के तहत मुंबई को झीलों से सप्लाई किया जाने वाला पानी 99.34 परसेंट प्योर है।

ये पूरा मामला मुंबई के वॉटर मैनेजमेंट सिस्टम पर सवाल खड़े करता है। एक तरफ BMC का दावा है कि सब कुछ ठीक है, तो दूसरी तरफ एक्सपर्ट्स की चिंताएं हैं। ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि इन झीलों की रेगुलर सफाई हो और उनकी कैपेसिटी का सही आंकलन किया जाए।

मुंबई जैसे बड़े शहर के लिए पानी की सप्लाई एक बड़ा चैलेंज है। अगर इन झीलों की कैपेसिटी कम होती है, तो इसका सीधा असर शहर के लाखों लोगों पर पड़ेगा। इसलिए ये जरूरी है कि BMC और दूसरी एजेंसीज मिलकर इस मुद्दे पर गंभीरता से काम करें।

ये मामला सिर्फ मुंबई तक सीमित नहीं है। देश के कई बड़े शहरों में पानी की किल्लत एक बड़ी समस्या है। ऐसे में जरूरी है कि हम अपने वॉटर रिसोर्सेज का ध्यान रखें और उनका सही मैनेजमेंट करें। तभी हम अपने शहरों को सस्टेनेबल बना पाएंगे और फ्यूचर जनरेशन्स के लिए पानी की सप्लाई सुनिश्चित कर पाएंगे।

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