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वायनाड त्रासदी: चेतावनियों की अनदेखी का खामियाजा, क्या बच सकती थीं कीमती जानें?

वायनाड त्रासदी: चेतावनियों की अनदेखी का खामियाजा, क्या बच सकती थीं कीमती जानें?

केरल के वायनाड में आए भयानक भूस्खलन ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। सैकड़ों परिवारों की जिंदगी तबाह हो गई और मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस बड़ी आपदा ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या इस तबाही को रोका जा सकता था? क्या सरकार ने विशेषज्ञों की चेतावनियों को नजरअंदाज किया? आइए इस पूरे मामले को गहराई से समझते हैं।

पिछले साल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक महत्वपूर्ण मानचित्र जारी किया था। इस मानचित्र में इसरो ने साफ-साफ बताया था कि देश के 30 स्थानों पर भूस्खलन का खतरा है। इनमें से 10 स्थान अकेले केरल में थे। यह जानकारी बेहद अहम थी, लेकिन लगता है कि इस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया।

केरल के जंगलों की कहानी भी चिंताजनक है। एक अध्ययन के मुताबिक, 1950 से 2018 के बीच वायनाड में 62 प्रतिशत जंगल गायब हो गए। यह आंकड़ा बताता है कि इस क्षेत्र में प्राकृतिक संतुलन किस तरह बिगड़ा है। जंगलों की कटाई ने भूस्खलन का खतरा और बढ़ा दिया।

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल केरल सरकार की भूमिका पर उठ रहा है। जाने-माने पर्यावरणविद् माधव गाडगिल की अध्यक्षता वाली पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ समिति ने जिस जगह पर यह आपदा आई, उसे “अति संवेदनशील” बताया था। लेकिन ऐसा लगता है कि केरल सरकार ने इस महत्वपूर्ण सलाह को नजरअंदाज कर दिया। क्या यह लापरवाही इस त्रासदी का कारण बनी?

मौसम विभाग की भूमिका भी इस मामले में महत्वपूर्ण है। विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 29 जुलाई की रात से 30 जुलाई के बीच वायनाड में 34 सेंटीमीटर तक बारिश हुई। यह मात्रा सामान्य से बहुत अधिक थी। क्या इतनी भारी बारिश की चेतावनी पहले से दी गई थी? क्या लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए कहा गया था?

भारतीय मौसम विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नरेश कुमार का बयान इस मामले में बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि 29 जुलाई को वायनाड में असामान्य रूप से भारी बारिश हुई। उन्होंने यह भी बताया कि अभी भी इस क्षेत्र में खतरा टला नहीं है। क्या इस जानकारी के आधार पर बचाव कार्य को और तेज किया जा सकता था?

जलवायु परिवर्तन की भूमिका भी इस आपदा में अहम हो सकती है। कोचीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के एस. अभिलाष का कहना है कि अरब सागर के गर्म होने से केरल का मौसम अस्थिर हो रहा है। इससे वहां सामान्य से अधिक तीव्र बारिश हो रही है। क्या यह एक बड़ा संकेत है कि हमें जलवायु परिवर्तन के खिलाफ और अधिक गंभीर कदम उठाने चाहिए?

इस पूरी घटना से सबक लेने की जरूरत है। विशेषज्ञों की चेतावनियों को गंभीरता से लेना चाहिए। प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए जंगलों की सुरक्षा जरूरी है। मौसम की भविष्यवाणी और आपदा प्रबंधन को और मजबूत करना होगा। तभी हम ऐसी त्रासदियों से बच सकते हैं और कीमती जानें बचा सकते हैं।

वायनाड की यह त्रासदी हमें याद दिलाती है कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना कितना जरूरी है। हमें अपने विकास के मॉडल पर फिर से विचार करना होगा। साथ ही, आपदा प्रबंधन की तैयारियों को और मजबूत करना होगा। तभी हम ऐसी दुर्घटनाओं से बच सकते हैं और अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।

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