दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि ईवीएम को इंसान या एआई से हैक किया जा सकता है। उनके इस दावे पर पूर्व सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि भारतीय ईवीएम सुरक्षित हैं। इन्हें हैक करने का कोई तरीका नहीं है क्योंकि ये किसी नेटवर्क या मीडिया से कनेक्टेड नहीं होती हैं।
आइए जानते हैं कि भारतीय और अमेरिकी ईवीएम में क्या अंतर है और ये कैसे काम करती हैं।
अमेरिका में बैलेट पेपर से मतदान पर जोर
अमेरिका में 2022 के मिड टर्म चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक, 70% रजिस्टर्ड मतदाताओं ने बैलेट पेपर से मतदान किया। इसमें मतदाता अपने हाथ से बैलेट पेपर पर निशान लगाते हैं और इन बैलेट पेपर को मशीनों के जरिए स्कैन किया जाता है। केवल असाधारण स्थितियों में ही इन्हें हाथ से गिना जाता है।
वहीं, 23% मतदाताओं ने बैलेट मार्किंग डिवाइस (BMD) का उपयोग किया। इसमें मतदाता मशीन का इस्तेमाल करके वोट देते हैं और इसका प्रिंटआउट निकलता है जिसे स्कैन किया जाता है।
अमेरिका की EVM
सिर्फ 7% मतदाताओं ने डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक (DRE) मशीन का इस्तेमाल किया। DRE मशीनें वोट को अपनी मेमोरी में सुरक्षित रखती हैं और पेपर रिकॉर्ड भी देती हैं। DRE की टचस्क्रीन वोटिंग मशीन से कोई पेपर बैलेट नहीं निकलता और न ही इसका ऑडिट हो सकता है। इस वजह से मतदाता किसी गड़बड़ी का पता नहीं लगा सकता क्योंकि उसे सही मतदान दिखाई देता है, जबकि डिजिटल तरीके से गलत वोट रिकॉर्ड हो सकता है।
अमेरिकी EVM की खामियाँ
अमेरिकी ईवीएम में सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें इलेक्ट्रॉनिक वोट के बैकअप के लिए कोई फिजिकल रिकॉर्ड नहीं है। चुनाव अधिकारी मशीनों पर ही भरोसा करने को मजबूर होते हैं कि वे हैक या खराब नहीं हुई हैं जिससे वोट बदला या खो सकता है। DRE को बनाने वाली कंपनियों की विश्वसनीयता पर संदेह रहता है क्योंकि हर राज्य अलग-अलग कंपनियों की मशीनें उपयोग करता है।
भारत की EVM
भारतीय ईवीएम बैटरी से चलने वाली मशीनें होती हैं जो मतदान के दौरान डाले गए वोटों को दर्ज करती हैं और उनकी गिनती भी करती हैं। ये मशीनें तीन हिस्सों में होती हैं: कंट्रोल यूनिट (CU), बैलेटिंग यूनिट (BU), और VVPAT। बैलेट यूनिट पर मतदाता बटन दबाकर वोट देते हैं और दूसरी यूनिट उस वोट को स्टोर करती है। कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास होती है और बैलेट यूनिट घेर में रखी रहती है जहां लोग वोट डालते हैं।
भारतीय EVM की सुरक्षा
भारतीय ईवीएम किसी भी नेटवर्क या मीडिया से कनेक्टेड नहीं होती हैं, इसलिए इन्हें हैक करना संभव नहीं है। इनकी प्रोग्रामिंग केवल एक बार होती है और उसमें बदलाव नहीं हो सकता। भारत में ईवीएम को मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस की भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (बेंगलुरु) और इलेक्ट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (हैदराबाद) बनाते हैं। एक ईवीएम यूनिट बनाने में करीब 8700 रुपये का खर्च आता है।
VVPAT
वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) ईवीएम से जुड़ा होता है जिससे मतदाता देख सकते हैं कि उनका वोट सही उम्मीदवार को पड़ा है या नहीं।
इस प्रकार, भारतीय ईवीएम की संरचना और सुरक्षा उपायों की वजह से ये पूरी तरह सुरक्षित हैं और इन्हें हैक करना संभव नहीं है।