महाराष्ट्र में एक बार फिर भाषा को लेकर विवाद ने जोर पकड़ लिया है। इस बार मामला पहली कक्षा से हिंदी को अनिवार्य विषय के रूप में लागू करने के प्रस्ताव से जुड़ा है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने इस प्रस्ताव के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने राज्य सरकार पर मराठी भाषा की अनदेखी करने और हिंदी को जबरन थोपने का गंभीर आरोप लगाया है।
राज ठाकरे का कड़ा रुख
राज ठाकरे ने इस मुद्दे पर अपनी नाराजगी को बेबाकी से जाहिर किया। उन्होंने सवाल उठाया कि आज भाषा को थोपा जा रहा है, तो कल क्या थोपा जाएगा? उनका कहना है कि मराठी भाषा महाराष्ट्र की पहचान है और इसे कमजोर करने की कोई भी कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी। राज ठाकरे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर अपनी बात रखते हुए लिखा कि इस तरह के फैसले मराठी भाषा और संस्कृति के लिए खतरा हैं। उनके इस बयान ने न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचाई, बल्कि आम लोगों के बीच भी चर्चा का विषय बन गया।
मराठी भाषा की अनदेखी का आरोप
राज ठाकरे का मानना है कि पहली कक्षा से हिंदी को अनिवार्य करना मराठी भाषा को हाशिए पर धकेलने की साजिश है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में मराठी को वa सम्मान और महत्व मिलना चाहिए, जो इसकी हकदार है। उनके समर्थकों का भी यही कहना है कि मराठी भाषा को बढ़ावा देने के बजाय, सरकार अन्य भाषाओं को प्राथमिकता दे रही है। इस बयान के बाद कई लोग सोशल मीडिया पर राज ठाकरे के समर्थन में उतर आए, जबकि कुछ ने इस मुद्दे पर अलग-अलग राय रखी।
राजनीतिक बहस का नया दौर
इस पूरे विवाद ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। राज ठाकरे के बयान के बाद कई राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। कुछ लोग इसे भाषाई अस्मिता से जोड़कर देख रहे हैं, तो कुछ का मानना है कि शिक्षा में हिंदी को शामिल करना गलत नहीं है। हालांकि, राज ठाकरे का रुख साफ है कि वो मराठी भाषा के साथ किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं हैं।
ये विवाद अभी थमने का नाम नहीं ले रहा। राज ठाकरे के तीखे तेवर और उनके समर्थकों का साथ इस मुद्दे को और गर्म करने की संभावना है। दूसरी ओर, सरकार की ओर से अभी तक इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि ये मामला किस दिशा में जाता है और क्या मराठी और हिंदी के बीच का ये तनाव कम हो पाता है।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में भाषा का ये मुद्दा केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक भी है। राज ठाकरे ने इस मुद्दे को उठाकर एक बार फिर मराठी अस्मिता को केंद्र में ला दिया है। अब सवाल ये है कि क्या सरकार इस मामले में कोई बीच का रास्ता निकालेगी, या ये विवाद और बढ़ेगा? आप इस बारे में क्या सोचते हैं? अपनी राय हमें कमेंट में जरूर बताएं।
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