AMRUT Failure: महाराष्ट्र में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के उत्थान के लिए शुरू की गई एक महत्वपूर्ण पहल, एकेडमी ऑफ महाराष्ट्र रिसर्च, अपलिफ्टमेंट एंड ट्रेनिंग (एएमआरयूटी), आज गंभीर आलोचनाओं के घेरे में है। 2019 में राज्य सरकार द्वारा स्थापित इस संस्था का उद्देश्य ब्राह्मण, कोमटी, सिंधी, राजपूत, कायस्थ, सरस्वत और राजपुरोहित जैसे समुदायों के आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को शैक्षिक, वित्तीय और प्रतियोगी सहायता प्रदान करना था। लेकिन पाँच साल बाद भी यह संस्था अपने मूल उद्देश्य को पूरा करने में नाकाम रही है। इसे अब “एएमआरयूटी विफलता” (AMRUT Failure) और “आर्थिक कमजोर छात्र सहायता” (Economically Weaker Student Support) जैसे मुद्दों के साथ जोड़ा जा रहा है। आइए, इस कहानी को सरल और आकर्षक तरीके से समझते हैं।
एएमआरयूटी की स्थापना का मकसद था कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को बेहतर शिक्षा और करियर के अवसर मिलें। लेकिन हाल की रिपोर्ट्स बताती हैं कि यह संस्था अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल रही है। पिछले पाँच सालों में इस संस्था ने 88.15 करोड़ रुपये खर्च किए, लेकिन इसका बहुत कम हिस्सा ही सीधे छात्रों तक पहुँचा। 2023-24 में इसे 63 करोड़ रुपये और अगले वित्तीय वर्ष में दिसंबर 2024 तक 65 करोड़ रुपये मिले। फिर भी, इसका अधिकांश बजट प्रशासनिक खर्चों और वेतन पर खर्च हुआ, न कि उन छात्रों की मदद पर, जिनके लिए यह योजना बनाई गई थी। कुल बजट का केवल 2% हिस्सा, यानी 1.55 करोड़ रुपये, वेतन और प्रशासनिक खर्चों पर गया, लेकिन प्रचार और जागरूकता के लिए केवल 6.32 लाख रुपये खर्च किए गए। इसकी वजह से, खासकर ग्रामीण महाराष्ट्र में, इस योजना के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है।
कुलदीप अंबेकर, जो स्टूडेंट हेल्पिंग हैंड्स के संस्थापक हैं, ने इस स्थिति को “बेहद दयनीय” बताया। उन्होंने सवाल उठाया कि पाँच साल बाद भी एएमआरयूटी ने न तो कोई बुनियादी सूचना पुस्तिका बनाई और न ही सोशल मीडिया पर अपनी मौजूदगी दर्ज की। आज के डिजिटल युग में, जब युवा सोशल मीडिया के जरिए हर जानकारी हासिल करते हैं, इस संस्था की ऑनलाइन उपस्थिति लगभग शून्य है। यह “एएमआरयूटी विफलता” (AMRUT Failure) का एक बड़ा कारण है, क्योंकि जिन छात्रों को इस योजना का लाभ मिलना चाहिए, उन्हें इसके बारे में पता ही नहीं है।
इस संस्था की सबसे बड़ी कमी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए सहायता प्रदान करने में दिखती है। आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए यूपीएससी, एमपीएससी, क्लैट और जेएमएफसी जैसी परीक्षाओं की तैयारी करना एक बड़ा सपना होता है। लेकिन एएमआरयूटी ने इनके लिए कोई ठोस कोचिंग प्रोग्राम शुरू नहीं किया। जेईई और नीट जैसी परीक्षाओं के लिए कोचिंग की घोषणा तो की गई, लेकिन इन्हें लागू करने में कोई प्रगति नहीं हुई। यह उन छात्रों के लिए बड़ा झटका है, जो सीमित संसाधनों के बावजूद बड़े सपने देखते हैं। इसके अलावा, उच्च शिक्षा और शोध के लिए भी कोई विशेष सहायता नहीं दी गई। जहाँ अन्य समुदायों के छात्रों को फेलोशिप और पीएचडी प्रोग्राम के लिए समर्थन मिलता है, वहीं एएमआरयूटी ने ऐसी योजनाओं को लागू करने से इनकार कर दिया।
एएमआरयूटी ने ऋण चुकौती योजनाओं या व्यक्तिगत उद्यमिता के लिए सहायता देने के वादे भी किए थे, लेकिन ये भी अधूरे रहे। इसके बजाय, संस्था ने स्व-रोजगार और तकनीकी प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया, जिसे अंबेकर ने “अस्थायी उपाय” करार दिया। उनका कहना है कि ये उपाय लंबे समय तक प्रभावी समाधान नहीं हैं। यह स्थिति उन छात्रों के लिए निराशाजनक है, जो अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए इस संस्था पर निर्भर थे।
एक और बड़ी आलोचना यह है कि एएमआरयूटी पुणे-केंद्रित होकर रह गया है। यह मुख्य रूप से शहरी आबादी की सेवा करता है, जबकि महाराष्ट्र के विशाल ग्रामीण क्षेत्रों की अनदेखी करता है। ग्रामीण छात्र, जो पहले से ही संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं, इस योजना से पूरी तरह वंचित रह गए। बाबासाहेब आंबेडकर रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (बार्टी), छत्रपति शाहू महाराज रिसर्च, ट्रेनिंग एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (सारथी) और महात्मा ज्योतिबा फुले रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (महाज्योति) जैसी अन्य संस्थाओं के साथ सूचीबद्ध होने के बावजूद, एएमआरयूटी अलग-थलग और कार्यात्मक रूप से असंबद्ध रह गया है।
यह स्थिति उन छात्रों के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करती है, जो आर्थिक कमजोर छात्र सहायता (Economically Weaker Student Support) की उम्मीद में इस योजना की ओर देख रहे थे। जब एक संस्था अपने मूल उद्देश्य से भटक जाती है, तो यह न केवल संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि उन युवाओं के सपनों पर भी चोट है, जो बेहतर भविष्य की उम्मीद रखते हैं।
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