Buldhana Mysterious Skin Disease: महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में एक ऐसी रहस्यमयी बीमारी ने लोगों के मन में दहशत पैदा कर दी है, जिसने न केवल उनकी सेहत, बल्कि उनकी रोज़मर्रा की जिंदगी को भी प्रभावित किया है। पहले लोगों के बाल झड़ने लगे, फिर उनके नाखून टूटकर गिरने शुरू हुए, और अब हाथों की त्वचा में गहरी, दर्दनाक दरारें पड़ रही हैं। यह सिलसिला इतना अजीब और चिंताजनक है कि बुलढाणा के गांवों में लोग डर के साए में जी रहे हैं। यह रहस्यमयी बीमारी (Mysterious Disease, रहस्यमयी बीमारी) हर उस व्यक्ति की चिंता का सबब बन गई है, जो अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य को लेकर सतर्क है। आइए, इस पूरी कहानी को समझते हैं और जानते हैं कि स्वास्थ्य विभाग इस त्रासदी से निपटने के लिए क्या कर रहा है।
बुलढाणा के शेगांव, खामगांव और नांदुरा जैसे इलाकों में पहले ही बालों और नाखूनों के झड़ने की घटनाएं सामने आ चुकी थीं। लोग हैरान थे कि अचानक उनके बाल तेजी से गिर रहे थे, और नाखून कमजोर होकर टूट रहे थे। इस मानसिक और शारीरिक तकलीफ से लोग अभी उबर भी नहीं पाए थे कि एक नई मुसीबत ने दस्तक दे दी। अब मेहकर तहसील के शेलगांव देशमुख गांव में लोगों के हाथों की त्वचा फटने लगी है। इस गांव की आबादी करीब चार से पांच हजार है, और अब तक 20 लोग इस नई समस्या से जूझ रहे हैं। उनके हाथों में गहरी दरारें पड़ रही हैं, जो इतनी दर्दनाक हैं कि रोज़मर्रा के काम करना मुश्किल हो गया है।
यह मामला सिर्फ एक गांव तक सीमित नहीं है। यह बीमारी केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव के संसदीय क्षेत्र से जुड़ी है, जिसकी वजह से प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग में हलचल मच गई है। लोग शुरू में डर गए थे कि कहीं यह बीमारी छूने या संपर्क से फैलने वाली (Contagious Disease, संक्रामक रोग) तो नहीं। इस आशंका को दूर करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने तुरंत कार्रवाही की। 15 जून 2025 को एक विशेषज्ञों की टीम शेलगांव देशमुख गांव पहुंची। इस टीम में जिला संक्रामक रोग सर्वेक्षण अधिकारी डॉ. प्रशांत तांगडे, त्वचा रोग विशेषज्ञ बालाजी आद्रट, चिकित्सा अधिकारी डॉ. माधुरी मिश्रा, स्वास्थ्य सेवक और आशा कार्यकर्ता शामिल थे।
टीम ने गांव का दौरा किया और 20 मरीजों की गहन जांच की। जांच के बाद राहत की खबर आई कि यह बीमारी संक्रामक नहीं है। विशेषज्ञों ने पाया कि इन 20 मरीजों में से 14 को पामो-प्लांटर एक्जिमा, पामो-प्लांटर डर्मा और पामो-प्लांटर सोरायसिस जैसी त्वचा की बीमारियां हैं। इन रोगों में हाथों और पैरों की हथेलियों और तलवों की त्वचा सूख जाती है, और उसमें गहरी दरारें पड़ने लगती हैं। यह स्थिति खासकर उन लोगों में देखी जाती है, जो रसायनों, साबुन या डिटर्जेंट के लगातार संपर्क में रहते हैं। बुलढाणा के ग्रामीण इलाकों में कई लोग खेती-बाड़ी या छोटे-मोटे काम करते हैं, जहां उनकी त्वचा रसायनों और गंदगी के संपर्क में आती है।
स्वास्थ्य विभाग ने इस बीमारी को समझने के लिए गहन अध्ययन किया। पामो-प्लांटर रोगों का कारण कई बार आनुवंशिक होता है, लेकिन पर्यावरणीय कारक जैसे रसायनों का इस्तेमाल, त्वचा की नमी की कमी और खराब स्वच्छता भी इसे बढ़ावा दे सकते हैं। शेलगांव देशमुख में प्रभावित लोग ज्यादातर खेतिहर मज़दूर या छोटे कारोबारी हैं, जिनके हाथ बार-बार पानी, मिट्टी या रसायनों के संपर्क में आते हैं। इन दरारों की वजह से न केवल दर्द होता है, बल्कि त्वचा में बैक्टीरिया के प्रवेश का खतरा भी बढ़ जाता है। अगर समय पर इलाज न हो, तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।
स्वास्थ्य विभाग ने लोगों को आश्वस्त किया कि यह बीमारी डराने वाली नहीं है। सही देखभाल और सावधानी से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। गांव में स्वास्थ्य शिविर लगाए गए, जहां मरीजों को मॉइस्चराइज़र और दवाइयां दी गईं। डॉक्टरों ने बताया कि त्वचा को रसायनों से बचाने के लिए दस्ताने पहनना ज़रूरी है। साबुन और डिटर्जेंट का कम इस्तेमाल करें, और खेती में कीटनाशकों का उपयोग करते समय सावधानी बरतें। त्वचा को नम रखने के लिए नियमित रूप से मलहम या मॉइस्चराइज़र लगाना चाहिए। अगर खुजली बढ़े या दरारें गहरी हों, तो तुरंत त्वचा विशेषज्ञ से मिलना चाहिए।
यह बीमारी भले ही संक्रामक न हो, लेकिन ग्रामीणों के मन में डर और भ्रम का माहौल है। कुछ लोग इसे किसी अज्ञात कारण से जोड़ रहे हैं, तो कुछ इसे पानी या मिट्टी की गुणवत्ता से। स्वास्थ्य विभाग ने साफ किया कि यह कोई नई बीमारी नहीं है, बल्कि त्वचा की एक सामान्य समस्या है, जो सही देखभाल से ठीक हो सकती है। गांव में जागरूकता अभियान शुरू किए गए हैं, ताकि लोग घबराने की बजाय सही जानकारी के साथ अपनी सेहत का ख्याल रखें। विशेषज्ञों की टीमें लगातार नज़र रख रही हैं, और स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है।
बुलढाणा में यह सिलसिला सिर्फ एक गांव या एक बीमारी की कहानी नहीं है। पहले बाल झड़ने, फिर नाखून गिरने और अब त्वचा फटने की घटनाएं पूरे जिले के लिए एक चेतावनी हैं। ये समस्याएं एक साथ क्यों और कैसे सामने आईं, यह अभी पूरी तरह साफ नहीं है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पर्यावरणीय बदलाव, जैसे पानी की गुणवत्ता, मिट्टी में रसायनों की मात्रा या मौसम में बदलाव, इन समस्याओं का कारण हो सकते हैं। दूसरी ओर, स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि ये अलग-अलग बीमारियां हैं, जिनका आपस में कोई सीधा संबंध नहीं है।
शेलगांव देशमुख के लोग अब धीरे-धीरे इस डर से बाहर निकल रहे हैं। स्वास्थ्य शिविरों और डॉक्टरों की सलाह ने उन्हें भरोसा दिया है कि यह बीमारी लाइलाज नहीं है। गांव की आशा कार्यकर्ताएं घर-घर जाकर लोगों को त्वचा की देखभाल के तरीके बता रही हैं। जिला प्रशासन ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है, और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय तक यह बात पहुंच चुकी है। बुलढाणा के इस अनुभव ने एक बार फिर यह सिखाया है कि स्वास्थ्य से जुड़ी हर छोटी-बड़ी समस्या को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।
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