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क्या LGBTQ+ समुदाय रक्तदान कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा, जानिए पूरी कहानी

क्या LGBTQ+ समुदाय रक्तदान कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा, जानिए पूरी कहानी

आज हम आपको एक ऐसे मुद्दे के बारे में बताने जा रहे हैं, जो समाज के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करता है। यह मुद्दा है LGBTQ+ समुदाय का रक्तदान करने का अधिकार। क्या आप जानते हैं कि भारत में LGBTQ+ समुदाय के लोगों को रक्तदान करने की अनुमति नहीं है? आइए इस विषय पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

LGBTQ+ समुदाय के लोग लंबे समय से अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। अब उन्होंने एक नई लड़ाई शुरू की है। वे चाहते हैं कि उन्हें भी रक्तदान करने का अधिकार मिले। इसके लिए उन्होंने देश की सबसे बड़ी अदालत, सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

शरीफ रंगनेकर नाम के एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। इस याचिका में उन्होंने सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद (NBTC) और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के 2017 के नियमों को चुनौती दी है।

2017 में बनाए गए इन नियमों के अनुसार, ट्रांसजेंडर लोगों, महिला यौनकर्मियों और पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों को रक्तदान करने की अनुमति नहीं है। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह नियम गलत है और इसे बदला जाना चाहिए।

याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह नियम LGBTQ+ समुदाय के लोगों के साथ भेदभाव करता है। यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। भारत के संविधान में हर नागरिक को समानता, सम्मान और जीवन का अधिकार दिया गया है। लेकिन यह नियम उन अधिकारों को छीन लेता है।

LGBTQ+ समुदाय का कहना है कि रक्तदान एक महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य है। इससे कई लोगों की जान बचाई जा सकती है। लेकिन इस नियम के कारण वे इस नेक काम में हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं। वे महसूस करते हैं कि इस तरह के प्रतिबंध उन्हें समाज में अलग-थलग कर देते हैं।

हालांकि, इस मुद्दे पर चिकित्सा जगत की अपनी चिंताएं हैं। कुछ डॉक्टरों का कहना है कि यह प्रतिबंध जरूरी है। उनका मानना है कि इससे HIV जैसे खतरनाक रोगों के फैलने का खतरा कम होता है। लेकिन LGBTQ+ समुदाय इस तर्क से सहमत नहीं है। उनका कहना है कि यह सोच पुरानी है और इससे उनके खिलाफ भेदभाव बढ़ता है।

अब इस पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट 30 जुलाई को सुनवाई करेगा। देश के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच इस याचिका पर विचार करेगी। LGBTQ+ समुदाय को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट उनके पक्ष में फैसला करेगा।

यह मामला सिर्फ रक्तदान तक सीमित नहीं है। यह LGBTQ+ समुदाय की बड़ी लड़ाई का एक हिस्सा है। वे चाहते हैं कि समाज उन्हें स्वीकार करे और उन्हें बराबरी का दर्जा दे। रक्तदान का अधिकार इसी बराबरी की मांग का एक पहलू है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि समय आ गया है कि हम अपनी सोच बदलें। हमें सभी नागरिकों को समान अधिकार देने चाहिए, चाहे उनकी यौन पहचान या प्राथमिकता कुछ भी हो। वे मानते हैं कि इस तरह के बदलाव से ही समाज आगे बढ़ सकता है।

यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट के हाथों में है। देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला न सिर्फ LGBTQ+ समुदाय के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण होगा। यह फैसला तय करेगा कि क्या हम सच में एक समावेशी और समान समाज की ओर बढ़ रहे हैं।

Note –
मिस ट्रांसक्वीन ऑफ इंडिया, नव्या सिंह का फुल एक्सक्लूसिव इंटरव्यू देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें –

 

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