महाराष्ट्रमुंबई

Election Symbol Dispute: महाराष्ट्र में ‘घड़ी’ (Clock) चुनाव चिह्न विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

Election Symbol Dispute: महाराष्ट्र में ‘घड़ी’ (Clock) चुनाव चिह्न विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

Election Symbol Dispute: महाराष्ट्र की राजनीति में लगातार उभरते शरद पवार और अजीत पवार के बीच ‘घड़ी’ चुनाव चिह्न को लेकर एक बड़ा कानूनी विवाद छिड़ा हुआ है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी गुट को आदेश दिया कि वह ‘घड़ी’ (Clock) चुनाव चिह्न को लेकर अखबारों में 36 घंटे के भीतर डिस्क्लेमर प्रकाशित करें, जिससे आम जनता में भ्रम की स्थिति न बने। कोर्ट ने मराठी अखबारों में विशेषकर इस निर्देश का पालन करने को कहा ताकि महाराष्ट्र के हर वर्ग तक यह सूचना पहुंचे।

अजीत पवार का पक्ष और कोर्ट का रुख

अजीत पवार गुट ने कोर्ट के इस निर्देश पर कहा कि वे पहले से ही पिछले आदेश का पालन कर रहे हैं और चुनाव चिह्न ‘घड़ी’ (Clock) का सही तरीके से उपयोग कर रहे हैं। अजीत पवार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्होंने अखबारों में अपने अंडरटेकिंग की प्रति पहले ही प्रकाशित कर दी है और इसे सभी प्रमुख मराठी समाचार पत्रों में प्रदर्शित किया गया है। इसके बावजूद, शरद पवार गुट के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में आरोप लगाया कि अजीत पवार गुट ने घड़ी (Clock) चिह्न को लेकर भ्रम फैला रखा है और मतदाताओं को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है।

कोर्ट ने इस पर नाराज़गी जताई और पूछा कि अखबारों में डिस्क्लेमर प्रकाशित करने में इतनी देर क्यों हो रही है। कोर्ट ने अजीत पवार गुट से 36 घंटे के भीतर मराठी अखबारों में भी डिस्क्लेमर प्रकाशित करने का निर्देश दिया ताकि महाराष्ट्र के हर नागरिक तक यह संदेश साफ़ तरीके से पहुंच सके कि ‘घड़ी’ चुनाव चिह्न के अधिकार को लेकर मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है।

शरद पवार गुट का तर्क और मामले की जमीनी हकीकत

शरद पवार के वकील ने कोर्ट में बताया कि अजीत पवार के समर्थक ‘घड़ी’ (Clock) चुनाव चिह्न के साथ शरद पवार के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं और इससे आम लोगों में भ्रम फैल रहा है। शरद पवार गुट के अनुसार, अजीत पवार के कार्यकर्ताओं ने कई वीडियो को साझा किया है जिनमें ‘घड़ी’ चुनाव चिह्न का शरद पवार के नाम के साथ प्रयोग हो रहा है। इस प्रकार की हरकतें मतदाताओं में भ्रम पैदा करने का कार्य कर रही हैं और इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।

कोर्ट ने शरद पवार गुट के इस आरोप को गंभीरता से लेते हुए कहा कि चुनाव चिह्न का उपयोग शर्तों के अधीन किया जाना चाहिए। कोर्ट ने अजीत पवार गुट को यह निर्देश दिया कि 36 घंटे के भीतर यह स्पष्ट किया जाए कि चुनाव चिह्न का मसला कोर्ट में लंबित है और किसी भी गुट को इसका दुरुपयोग करने का अधिकार नहीं है।

कोर्ट का सख्त रुख और आगामी सुनवाई

अब इस विवाद की अगली सुनवाई 13 नवंबर को होनी है, जहां कोर्ट इस मामले में आगे के कदमों का निर्णय लेगी। इस सुनवाई से यह भी स्पष्ट होगा कि किस प्रकार चुनाव चिह्न के अधिकारों का उपयोग किया जा सकता है और मतदाताओं को भ्रम से बचाने के लिए किस हद तक नियंत्रण रखा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी गुट को चुनाव चिह्न का उपयोग करते समय मतदाताओं में भ्रम नहीं फैलाना चाहिए।

क्यों है ‘घड़ी’ (Clock) चुनाव चिह्न विवाद महत्वपूर्ण?

यह चुनाव चिह्न विवाद महाराष्ट्र में बड़े राजनीतिक महत्व का प्रतीक बन चुका है। ‘घड़ी’ चुनाव चिह्न को लेकर शरद पवार और अजीत पवार के बीच की तनातनी ने राजनीति में एक अलग ही माहौल बना दिया है। इस विवाद ने न केवल एनसीपी पार्टी के अंदर विभाजन को दर्शाया है, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में भविष्य के समीकरणों पर भी सवाल खड़े किए हैं।

इस पूरे मामले से यह स्पष्ट होता है कि चुनाव चिह्न का उपयोग करने के अधिकार को लेकर कोर्ट कितना सख्त है और इस तरह के मुद्दों का निपटारा जनता के हित में किया जा रहा है। चुनाव चिह्न का उपयोग बहुत ही संवेदनशील मसला है और इस पर सभी पार्टियों को कोर्ट के निर्देशों का पालन करना आवश्यक है।

इस मामले के फैसले का महाराष्ट्र की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह तो आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा, लेकिन यह निश्चित है कि सुप्रीम कोर्ट के इस सख्त आदेश के बाद अब चुनाव चिह्न का दुरुपयोग करने वाले किसी भी गुट के लिए अदालत में मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

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