वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र की आलोचना करते हुए कड़े सवाल उठाए हैं। उन्होंने संदेह व्यक्त किया है कि क्या कांग्रेस ने वादों की वित्तीय लागत का आकलन किया है और क्या वे इन योजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर उधार लेंगे या कर बढ़ाएंगे।
सीतारमण ने कहा कि जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने कोविड महामारी के बाद आर्थिक वृद्धि को बनाए रखते हुए राजकोषीय मजबूती के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है, कांग्रेस के घोषणापत्र में किए गए वादे केवल उदार वादे लगते हैं।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का वित्तीय प्रबंधन पूर्व यूपीए सरकार की तुलना में काफी बेहतर रहा है। वित्त मंत्री ने आंकड़े पेश किए कि वित्त वर्ष 2003-04 से 2013-14 के दौरान यूपीए शासन के तहत केंद्र का कुल कर्ज लगभग 3.2 गुना बढ़ गया था। लेकिन वर्तमान सरकार के तहत वित्त वर्ष 2023-24 में यह 172.37 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जो 2.9 गुना की वृद्धि है और यूपीए शासन की अवधि से कम है।
सीतारमण ने कहा कि उनकी सरकार ने राजकोषीय घाटे को संभालने का प्रयास किया है। वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी के प्रतिशत के रूप में 5.8% था, जिसे वित्त वर्ष 2024-25 में घटाकर 5.1% करने का अनुमान है। साथ ही, केंद्र का कर्ज-जीडीपी अनुपात 2020-21 में 61.4% से घटकर 2023-24 में 57.1% हो गया है।
वित्त मंत्री का कहना है कि इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार समुचित राजकोषीय प्रबंधन और विवेकपूर्ण खर्च नीतियों का पालन कर रही है। उन्होंने संकेत दिया कि कांग्रेस के वादे बेतहाशा खर्च की ओर ले जाएंगे और देश को अर्थव्यवस्था को संतुलित करने से दूर ले जाएंगे।
सीतारमण ने कहा कि कांग्रेस को अपने वादों पर दोबारा विचार करना चाहिए और यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे इन्हें कैसे वित्तपोषित करेंगे। उन्होंने मोदी सरकार की आर्थिक उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए इसे आगामी चुनाव का एक मुद्दा बनाया है।