देश की आर्थिक राजधानी मुंबई, जहां विविध संस्कृतियों का मेल होता है, वहां एक हाउसिंग सोसाइटी में खान-पान को लेकर शुरू हुआ विवाद अब लोगों के बीच चर्चा का विषय बन चुका है। ये मामला घाटकोपर इलाके की एक हाउसिंग सोसाइटी का है, जहां शाकाहारी और मांसाहारी भोजन को लेकर बहस इतनी बढ़ गई कि बात पुलिस तक पहुंच गई।
क्या है पूरा मामला?
घाटकोपर की इस हाउसिंग सोसाइटी में गुजराती और मराठी समुदाय के बीच उस समय तनाव पैदा हो गया, जब कुछ मराठी परिवारों को उनके मांसाहारी भोजन की वजह से कथित तौर पर अपमानित किया गया। इन परिवारों को उनके खाने को लेकर ‘गंदा’ कहा गया और उनकी खान-पान की आजादी पर सवाल उठाए गए। ये विवाद तब और गहरा गया, जब सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के कार्यकर्ता सोसाइटी के गुजराती निवासियों से तीखे अंदाज में बात करते नजर आए।
MNS ने उठाई आवाज
वायरल वीडियो में MNS नेता राज पाट्रे बेहद गुस्से में दिखाई दिए। उन्होंने सोसाइटी के कुछ सदस्यों पर मराठी परिवारों को अपमानित करने का गंभीर आरोप लगाया। उनका कहना था कि इन परिवारों को अपने घर में मांस और मछली पकाने की इजाजत नहीं दी जा रही है। इस वजह से वे बाहर से खाना मंगवाने के लिए मजबूर हैं। राज पाट्रे ने जोर देकर कहा कि मुंबई जैसे शहर में, जहां हर संस्कृति का सम्मान किया जाता है, किसी को भी दूसरों के खान-पान पर रोक लगाने का अधिकार नहीं है।
हालांकि, सोसाइटी के एक निवासी ने दावा किया कि खाने-पीने पर कोई औपचारिक पाबंदी नहीं है। फिर भी, MNS ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और इसे मराठी समुदाय के सम्मान से जोड़ दिया।
पुलिस ने संभाला मोर्चा
विवाद बढ़ता देख पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। तनाव बढ़ने की आशंका के चलते पुलिस ने मौके पर पहुंचकर दोनों पक्षों से बात की और शांति बनाए रखने की अपील की। पुलिस का कहना है कि ये विवाद पूरी तरह से सोसाइटी का आंतरिक मामला है। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि सोसाइटी में पहले से ही दो गुटों के बीच तनाव चल रहा था। हाल ही में श्री रेंज नाम के एक व्यक्ति ने सोसाइटी की कमेटी का चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए। इसके बाद से सोसाइटी में दो धड़े बन गए, जिसने इस विवाद को और हवा दी।
पुलिस अब दोनों पक्षों के साथ बातचीत कर इस मामले को आपसी सहमति से सुलझाने की कोशिश कर रही है।
क्या ये सिर्फ खान-पान का मुद्दा है?
ये विवाद केवल एक हाउसिंग सोसाइटी तक सीमित नहीं है। इससे पहले भी MNS और शिवसेना जैसे संगठन मराठी भाषी परिवारों के साथ खान-पान को लेकर होने वाले भेदभाव के मुद्दे को उठा चुके हैं। MNS लंबे समय से मराठी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने की वकालत करता रहा है। संगठन ने सार्वजनिक स्थानों, बैंकों और सरकारी दफ्तरों में मराठी भाषा के उपयोग पर जोर दिया है। इस बार खान-पान का ये मुद्दा भी उनके लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है।
मुंबई जैसे महानगर में, जहां हर धर्म, संस्कृति और समुदाय के लोग एक साथ रहते हैं, इस तरह के विवाद न केवल सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करते हैं, बल्कि आपसी सौहार्द पर भी सवाल उठाते हैं। ये घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमें अपनी पसंद और संस्कृति को दूसरों पर थोपना चाहिए? या फिर हमें एक-दूसरे की आजादी और पसंद का सम्मान करना चाहिए? इस मामले का समाधान आपसी बातचीत से निकल सकता है, बशर्ते दोनों पक्ष खुले दिल से एक-दूसरे को समझने की कोशिश करें।
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