लोकसभा का स्पीकर: देश के इतिहास में ऐसा दूसरी बार हो रहा है जब लोकसभा स्पीकर पद को लेकर आम सहमति नहीं बन पाई है और चुनाव कराने की नौबत आ गई है। NDA की ओर से ओम बिरला दूसरी बार स्पीकर पद के लिए दावेदारी कर रहे हैं, जबकि विपक्षी गठबंधन INDIA की ओर से कांग्रेस ने के. सुरेश को उम्मीदवार बनाया है। वोटिंग 26 जून को सुबह 11 बजे होगी।
स्पीकर चुनाव की प्रक्रिया
स्पीकर का चुनाव संसद में होता है, और प्रोटेम स्पीकर चुनाव की प्रक्रिया को संपन्न कराता है। राष्ट्रपति ने भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया है। वोटिंग से पहले अगर किसी सांसद का शपथ बाकी हो, तो उन्हें पहले शपथ दिलाई जाती है। इसके बाद प्रोटेम स्पीकर ओम बिरला और के. सुरेश के प्रस्तावक और अनुमोदक का नाम बुलाते हैं, और फिर मत विभाजन किया जाता है। साधारण बहुमत पाने वाले उम्मीदवार को विजयी घोषित किया जाता है।
आम सहमति से चुनाव की परंपरा क्यों टूटी?
स्पीकर पद को निष्पक्ष माना जाता है और इस पर आम राय बनती आई है। इस बार भी सरकार ने आम राय बनाने की कोशिश की, लेकिन डिप्टी स्पीकर पर बात अटक गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा की बैठक में यह फैसला हुआ कि स्पीकर पद पर निरंतरता बनाए रखी जाएगी और ओम बिरला को फिर से स्पीकर बनाया जाएगा। विपक्ष और सहयोगी दलों से चर्चा कर आम राय बनाने की जिम्मेदारी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को दी गई।
कांग्रेस का दलित कार्ड
कांग्रेस ने अपने 8 बार के सांसद के. सुरेश को उम्मीदवार बनाते हुए दलित कार्ड खेला है। TMC और शरद पवार गुट जैसे सहयोगी दल इस फैसले से सहमत नहीं दिख रहे हैं, जिससे सरकार को थोड़ी राहत मिली है।
विपक्ष की जिद
विपक्ष डिप्टी स्पीकर पद चाह रहा है, जो फिलहाल सत्ता पक्ष ने नहीं दिया है। इसलिए विपक्ष चुनाव की जिद कर रहा है। दोनों खेमों ने अपने सांसदों को बुधवार सुबह संसद में उपस्थित रहने के निर्देश दिए हैं।
लोकसभा में नंबर गेम
लोकसभा में BJP के 240 सांसद हैं और NDA के कुल 293 सांसद हैं। दूसरी ओर, INDIA के पास 235 सांसद हैं। इसमें कांग्रेस के 98 सांसद शामिल हैं।
मत विभाजन की स्थिति
अगर मत विभाजन की मांग होती है, तो वोटिंग कागज की पर्चियों के जरिए की जाएगी। नए सदन में सदस्यों को अब तक सीटें आवंटित नहीं हुई हैं, इसलिए इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले सिस्टम का उपयोग नहीं किया जा सकता।
स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का इतिहास
देश के पहले लोकसभा स्पीकर जीवी मावलंकर थे, और डिप्टी स्पीकर एम ए अयंगर थे। 1976 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में दूसरा स्पीकर चुनाव हुआ। 17वीं लोकसभा में BJP के ओम बिरला स्पीकर थे।
लोकसभा स्पीकर की भूमिका
लोकसभा स्पीकर सदन के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए जिम्मेदार होता है। वे संसदीय बैठकों का एजेंडा तय करते हैं और विवाद होने पर नियमानुसार कार्रवाई करते हैं। स्पीकर समितियों का गठन करते हैं और उनके कार्य को निर्देशित करते हैं। स्पीकर के पास सदन में दुर्व्यवहार करने वाले सदस्यों को निलंबित करने की भी शक्ति होती है।
स्पीकर बनने की योग्यता
स्पीकर पद के लिए जरूरी है कि वह व्यक्ति लोकसभा का सदस्य हो। संविधान और कानूनों की समझ अध्यक्ष पद के लिए एक अहम गुण मानी जाती है। स्पीकर चुने जाने के लिए सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत की जरूरत होती है।
स्पीकर का कार्यकाल
स्पीकर का कार्यकाल लगभग 5 साल का होता है। लोकसभा भंग होने के बाद भी स्पीकर अपने पद पर बना रहता है, और अगली लोकसभा की पहली बैठक तक अपने पद को खाली नहीं करता।
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