भारत में मौसम की जानकारी प्राप्त करने की प्रक्रिया एक लंबे सफर का परिणाम है। आज तकनीक ने मौसम पूर्वानुमान को जितना आसान और सटीक बनाया है, अतीत में इसका स्वरूप पूरी तरह अलग था। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Department, IMD) अपनी 150वीं वर्षगांठ मना रहा है। ये अवसर हमें ये समझने का मौका देता है कि जब तकनीक नहीं थी, तब मौसम की भविष्यवाणी कैसे की जाती थी।
प्राचीन काल में मौसम पूर्वानुमान
भारत का मौसम विज्ञान हजारों वर्षों से अस्तित्व में है। हमारे प्राचीन ग्रंथ जैसे वेद और उपनिषद, पर्यावरण और मौसम के रहस्यों को उजागर करते हैं। उपनिषदों में बादलों के बनने और बारिश की प्रक्रिया का उल्लेख मिलता है। वराहमिहिर, एक प्राचीन भारतीय खगोलविद और मौसम वैज्ञानिक, ने “बृहद्संहिता” में वायुमंडलीय घटनाओं पर गहन अध्ययन किया। उन्होंने लिखा, “आदित्यात् जायते वृष्टि” (सूर्य से वर्षा उत्पन्न होती है)।
किसानों और आमजन के लिए मौसम का पूर्वानुमान अनुभव और परंपरागत ज्ञान पर आधारित था। घाघ जैसे किसानों के लिए प्रसिद्ध भविष्यवक्ता, अपनी कहावतों के माध्यम से मौसम के संकेत देते थे। उनकी एक प्रसिद्ध कहावत है, “भुईं लोट बहै पुरवाई, तव जाना कि बरखा आई।” इसका अर्थ है कि यदि पूर्वी हवा जमीन को छूकर बह रही हो, तो बारिश की संभावना अधिक होती है।
विज्ञान और तकनीक का प्रवेश
19वीं शताब्दी में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना एक ऐतिहासिक घटना थी। वर्ष 1875 में अंग्रेजी सरकार ने IMD की नींव रखी। इसका मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं जैसे चक्रवात और सूखे से होने वाले नुकसान को कम करना था। एचएफ ब्लैंडफोर्ड, IMD के पहले रिपोर्टर, ने वर्षा मापने के लिए 77 रेन गॉज का उपयोग किया और भारत का पहला वर्षा नक्शा तैयार किया।
वर्षा मापने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला रेन गॉज (Rain Gauge) एक महत्वपूर्ण यंत्र है। ये बारिश की मात्रा को मिलीमीटर में मापता है। समय के साथ, इस उपकरण को और उन्नत किया गया, जिससे रिकॉर्डिंग में सटीकता आई।
तकनीकी प्रगति: IMD का योगदान
आज IMD दुनिया की अग्रणी मौसम विज्ञान एजेंसियों में से एक है। भारत ने 2023 तक 39 डॉपलर वेदर रडार और उपग्रह जैसे इनसैट 3डी/3डीआर का उपयोग करना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही, IMD के पास 806 ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन, 83 लाइटनिंग सेंसर, और 5,896 वर्षा निगरानी केंद्र हैं।
हाल के वर्षों में, IMD ने उन्नत न्यूमेरिकल वेदर प्रिडिक्शन मॉडल (Numerical Weather Prediction Model) को अपनाया है। ये तकनीक कुछ घंटों से लेकर पूरे मौसम का सटीक पूर्वानुमान प्रदान करती है। 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, IMD ने अपने चक्रवात पूर्वानुमान में अमेरिकी राष्ट्रीय हरिकेन केंद्र से भी बेहतर प्रदर्शन किया है।
नए युग का मौसम विज्ञान
मौसम विज्ञान में तकनीकी प्रगति ने न केवल भारत बल्कि अन्य देशों को भी मदद दी है। IMD अब नेपाल, मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश, और मॉरीशस जैसे देशों को मौसम पूर्वानुमान सेवाएं प्रदान करता है। ये प्रणाली विपरीत मौसम में जान-माल के नुकसान को कम करने में सक्षम है।
आज IMD के पास अत्याधुनिक उपकरण और डेटा सिस्टम हैं जो 80% तक सटीकता के साथ भारी बारिश और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाते हैं।
मौसम पूर्वानुमान का सफर प्राचीन ज्ञान से आधुनिक तकनीक तक का रहा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की 150वीं वर्षगांठ इस प्रगति की गवाह है। ये हमें यह सिखाता है कि कैसे समय के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने हमारे जीवन को सुरक्षित और बेहतर बनाया है।
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