मुंबई

लोकसभा चुनाव 2024 मंथन: विपक्ष उठा, क्षेत्रवाद उठा, बहुमत टूटा, गठबंधन मजबूत, आगे क्या?

लोकसभा चुनाव 2024 का मंथन: विपक्ष उठा, क्षेत्रवाद उठा, बहुमत टूटा, गठबंधन मजबूत, आगे क्या?

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों ने भारतीय राजनीति के अगले युग की नींव रख दी है। इस चुनाव ने कई दिलचस्प संकेत दिए हैं और राजनीतिक भूगोल में बदलाव लाने की क्षमता भी रखता है।

भाजपा ने इस चुनाव में 543 सीटों में से 240 सीटें जीतीं, जो बहुमत के आंकड़े 272 से काफी कम है। इससे पहले 2014 और 2019 के चुनावों में भाजपा को क्रमशः 282 और 303 सीटें मिली थीं। इस बार भाजपा को अपने गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ा है।

सबसे बड़ा सहयोगी दल तेलुगू देशम पार्टी (16 सीटें) को मनाना पड़ा। इसके अलावा जनता दल (यूनाइटेड) (12), शिवसेना (9) और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) (4) भी भाजपा के साथ आए। अब इन सभी दलों की मांगों को पूरा करना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी।

भाजपा के साथी संगठन आरएसएस भी इस बार नई स्थिति से निपटने की कोशिश करेगा। पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आरएसएस नेतृत्व इस बात पर जोर दे सकता है कि केंद्र सरकार गठन के दौरान उसकी राय भी ली जाए। आरएसएस मुख्यालय से जुड़े सूत्र बताते हैं कि सदस्यता के आधार पर चुने गए प्रतिनिधि अब केंद्र सरकार में शामिल किए जा सकते हैं।

राजधानी दिल्ली में सरकार गठन के लिए घमासान मचा हुआ है। दरबारियों और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच शुरू हो चुका है कयास लगाने का दौर कि अंततः किसे सत्ता मिलेगी। भाजपा के प्रमुख नेता स्वयं शाह ने अपने समर्थकों को आश्वस्त किया है कि वह सहयोगियों के साथ मिलकर स्थिर सरकार बनाएंगे।

लेकिन लोकसभा के गलियारों में चर्चाएं जोरों पर हैं। पटना के युवराज और बंगाली दिदी का बड़ा समर्थन है कि वे ना केवल भाजपा को साथ लेना चाहते हैं बल्कि अपनी शर्तें भी रखेंगे। यूपी की समाजवादी सेना भी बहुत उत्साहित है अपने प्रदर्शन से। अखिलेश यादव की आंखों में चमक है, जैसे वह भी केंद्र की सत्ता में हिस्सेदारी चाहते हैं।

उधर भाजपा के साथी दल तेलुगू देशम और शिवसेना भी अपने वजन तौल रहे हैं। गठबंधन बनाने के बावजूद भाजपा को ना केवल अपने सहयोगियों को संतुष्ट रखना होगा बल्कि विपक्ष की भी आवाज को सुनना होगा।

क्योंकि पहली बार बहुमत से दूर रहने के कारण भाजपा के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। आरएसएस की छत्रछाया में जन्मे इस दल को अब गैर-भाजपाई दलों पर भी निर्भर रहना होगा। सत्ता का इतिहास गवाह है कि गठबंधन कभी स्थिर नहीं रहते, जिससे भाजपा की परेशानियां बढ़ना तय हैं।

विपक्ष में कांग्रेस सबसे बड़ा दल बनकर उभरी है। उसने इस बार 99 सीटें जीतीं, जो 2014 के 44 सीटों की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन है। लेकिन विपक्ष की एकजुटता बनी रही।

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया और 37 सीटें हासिल कीं। यहां तक कि बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस 23 सीटों पर जीत गई। दक्षिण में डीएमके और तेलंगाना में भारत रस्ट्र समिति भी मुख्य विपक्षी शक्तियों के रूप में उभरे।

इन आंकड़ों से साफ है कि 2024 के चुनाव में न केवल विपक्ष मजबूत हुआ बल्कि क्षेत्रीय पार्टियों ने भी अपनी मुस्तैदी दिखाई। रिजल्ट के बाद करीब एक दर्जन राज्यों में विधानसभा चुनाव भी आने वाले हैं। इसलिए केंद्र सरकार गठन के लिए भाजपा को क्षेत्रीय दलों की मांगों पर भी विचार करना पड़ेगा।

दिल्ली की गलियों में अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या यूपी के नवयुवक नेता अखिलेश यादव मंत्रिमंडल में शामिल होंगे? क्या बंगाल की गरजती बाघिन ममता बनर्जी के लिए कोई रोल मिलेगा? अगर नहीं तो क्या वे सहज रूप से भाजपा सरकार को समर्थन देंगी? इन सवालों के जवाब आगे चल कर साफ होंगे।

बहरहाल, 2024 के लोकसभा चुनाव ने स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले दिनों में गठबंधन सरकारों की बारी होगी। केंद्रीय सत्ता हासिल करने के लिए बड़ी पार्टियों को छोटे दलों के साथ मिलना ही होगा। इसमें संघीयता और राज्यों की भागीदारी का महत्व और बढ़ जाएगा। राजनीतिक भूचाल से बचने के लिए दिल्ली की नयी सरकार को क्षेत्रीय मुद्दों पर भी ध्यान देना होगा। भारतीय राजनीति के इस नए युग में धैर्य और समझदारी की बहुत जरूरत पड़ेगी।

यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे भाजपा इस नए युग की चुनौतियों का सामना करती है।

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