मैरिटल रेप कानून (Marital Rape Law) को लेकर देश में एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया है जिसमें मैरिटल रेप कानून (Marital Rape Law) को अपराध बनाने का विरोध किया गया है। इस बात से समाज में कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
सरकार के तर्क और समाज का नजरिया
सरकार का कहना है कि यह मामला कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक है। उनका मानना है कि पहले से ही कई कानून मौजूद हैं जो शादीशुदा महिलाओं की सुरक्षा करते हैं। जैसे कि घरेलू हिंसा से बचाव का कानून और पति द्वारा बुरा बर्ताव करने पर सजा का प्रावधान। सरकार का तर्क है कि विवाह के बाहर और भीतर की घटनाओं को एक समान नहीं माना जा सकता।
शादी की संस्था पर असर
पति पत्नी के बीच जबरदस्ती (Forced Relations Between Spouses) के मुद्दे को लेकर सरकार की चिंता है कि अगर इसे अपराध माना गया तो इसका गलत इस्तेमाल हो सकता है। सरकार का मानना है कि इससे शादी की संस्था कमजोर हो सकती है। कई लोग इस कानून का इस्तेमाल अपने पति या पत्नी को परेशान करने के लिए कर सकते हैं।
महिला अधिकारों का सवाल
कई संगठन और कार्यकर्ता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि शादी के बाद भी महिला की सहमति जरूरी है। उनका कहना है कि जब किसी अजनबी द्वारा जबरदस्ती करना अपराध है, तो पति द्वारा ऐसा करना अपराध क्यों नहीं है। वे कह रहे हैं कि इस तरह का कानून न होने से शादीशुदा और गैर-शादीशुदा महिलाओं के बीच भेदभाव होता है।
न्यायपालिका की भूमिका
यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट के सामने है। कोर्ट को यह तय करना है कि क्या शादी के बाद पति द्वारा पत्नी की मर्जी के बिना शारीरिक संबंध बनाना अपराध माना जाए या नहीं। इस फैसले का न सिर्फ कानून पर, बल्कि पूरे समाज पर गहरा असर पड़ेगा। समाज में इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा की जरूरत है।
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