शिवसेना (UBT) सांसद संजय राउत हमेशा अपने बेबाक बयानों के लिए जाने जाते हैं, और आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने एक बार फिर अपनी धारदार राय सामने रखी। ईरान-इजराइल युद्ध से लेकर हिंदी थोपे जाने के मुद्दे और गुजरात बनाम महाराष्ट्र की भाषा नीति तक, राउत ने कई अहम विषयों पर अपनी बात रखी, जो निश्चित रूप से चर्चा का विषय बनेंगी।
ईरान की हिम्मत से सीखे भारत: ‘वे झुके नहीं, लड़े और लड़ेंगे भी!’
राउत ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत ईरान की तारीफ से की। उन्होंने कहा, “ईरान ने जो हिम्मत और स्वाभिमान दिखाया है, उससे हमारे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को सीखना चाहिए। ईरान झुका नहीं, लड़ा और लड़ेगा भी। उनके नेताओं का जज्बा काबिले-तारीफ है।” उन्होंने ये भी याद दिलाया कि जब भी भारत संकट में रहा है, ईरान हमेशा हमारे साथ खड़ा रहा है। राउत ने अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका पर भी निशाना साधते हुए कहा, “जब ट्रंप ने हमारे बारे में गलत बोला था, तब भारत चुप रहा, लेकिन ईरान ने ऐसा नहीं किया।”
राउत का मानना है कि भारत को भी ईरान जैसी “स्पष्ट नीति अपनानी चाहिए और देश की प्रतिष्ठा के लिए दृढ़ता से खड़ा होना चाहिए।” उनका ये बयान ऐसे समय में आया है जब ईरान-इजरायल के बीच जारी तनाव पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीजफायर का ऐलान करते हुए दोनों देशों से शांति बनाने की अपील की है।
‘हिंदी जबरन महाराष्ट्र में क्यों थोपी जा रही है?’ राउत का शिंदे-पवार पर तंज
भाषा विवाद पर बोलते हुए संजय राउत ने सीधे तौर पर महाराष्ट्र सरकार (शिंदे और अजित पवार गुट) पर तंज कसा। उन्होंने सवाल उठाया कि, “उन्हें (शिंदे और अजित पवार) मोदी से पूछना चाहिए कि हिंदी जबरन महाराष्ट्र में क्यों थोपी जा रही है, जबकि गुजरात में ऐसा क्यों नहीं हो रहा।”
राउत ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “अमित शाह ने कहा था ‘मैं गुजराती हूं, हिंदी नहीं’। हम महाराष्ट्र वाले हिंदी से प्यार करते हैं। हमारे पास हिंदी का व्यापार है, फिल्म इंडस्ट्री है, संगीत है, बड़े-बड़े हिंदी के अखबार महाराष्ट्र से निकलते हैं। हमें हिंदी सीखने की जरूरत नहीं है। आप जाएं और गुजरात में सिखाएं।”
संजय राउत के ये बयान निश्चित रूप से राजनीतिक गलियारों में गरमागरम बहस छेड़ेंगे। ईरान पर उनकी टिप्पणी जहां भारत की विदेश नीति को लेकर एक नई बहस शुरू कर सकती है, वहीं हिंदी थोपे जाने के मुद्दे पर उनके बयान महाराष्ट्र में भाषा विवाद को और हवा दे सकते हैं। खैर अब देखना ये होगा कि सरकार और अन्य राजनीतिक दल इन बयानों पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं।
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