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BJP की किस रणनीति ने महाराष्ट्र में दिलाई जीत?

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश (यूपी) उपचुनावों में BJP की सफलता एक बार फिर चर्चा का विषय बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का “एक हैं तो सेफ हैं” और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का “बंटेंगे तो कटेंगे” जैसे नारे चुनावी समीकरणों को स्पष्ट रूप से प्रभावित करते दिख रहे हैं। ऐसे में आइए, इन चुनावी नतीजों के पीछे की रणनीतियों और राजनीतिक बदलावों को विस्तार से समझते हैं।

लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने बदली रणनीति
महाराष्ट्र में 2019 के लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी (एमवीए) को 30 और बीजेपी के महायुति गठबंधन को 17 सीटें मिली थीं। इस झुकाव ने बीजेपी को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया। इस बार बीजेपी ने सतर्कता बरतते हुए प्रधानमंत्री मोदी और योगी आदित्यनाथ जैसे मजबूत चेहरों को आगे रखा।

2019 विधानसभा चुनाव के मुकाबले बीजेपी का प्रदर्शन
2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 105, शिवसेना (अविभाजित) को 56, एनसीपी (अविभाजित) को 54, और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं। हालांकि, शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई, लेकिन ये गठबंधन ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया।

2022 में शिवसेना के अंदर हुए विवाद के बाद एकनाथ शिंदे ने शिवसेना का अलग गुट बनाया और एनसीपी से अजित पवार भी अपने समर्थकों के साथ महायुति में शामिल हो गए। इन बदलावों ने शिवसेना और एनसीपी के पारंपरिक वोट बैंक को महायुति की ओर आकर्षित करने में बड़ी भूमिका निभाई।

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बीजेपी की जीत का बड़ा कारण
महाराष्ट्र में इस बार मराठा आरक्षण और बेरोजगारी जैसे मुद्दे पीछे रह गए। ध्रुवीकरण और हिंदुत्व जैसे मुद्दों ने महायुति के लिए समर्थन जुटाने में अहम भूमिका निभाई।

योगी आदित्यनाथ का नारा “बंटेंगे तो कटेंगे” पहले हरियाणा में सफल रहा था। हालांकि महाराष्ट्र में इसे शुरुआत में आलोचना का सामना करना पड़ा, क्योंकि यहां की राजनीति उत्तर प्रदेश या हरियाणा से अलग मानी जाती है। लेकिन चुनावी नतीजों ने साफ कर दिया कि ध्रुवीकरण का प्रभाव यहां भी दिखने लगा है।

RSS की सक्रियता और संगठन का योगदान
माना जा रहा है कि इस बार आरएसएस ने भी महाराष्ट्र में चुनावी रणनीति को बखूबी संभाला। लोकसभा चुनाव में यूपी में खराब प्रदर्शन के बाद, आरएसएस ने एक बार फिर सक्रिय भूमिका निभाई और बीजेपी को जमीनी स्तर पर मजबूत किया।

“लाडली बहन योजना” का प्रभाव
मध्य प्रदेश की तर्ज पर महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने “लाडली बहन योजना” की शुरुआत की। इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को हर महीने ₹1500 दिए जा रहे हैं। इसने ग्रामीण और महिला वोटरों को बीजेपी की ओर आकर्षित किया।

विपक्ष के मुद्दे क्यों फेल हुए?
कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना, और शरद पवार की एनसीपी ने महंगाई, बेरोजगारी और किसानों की समस्याओं जैसे मुद्दों पर राज्य सरकार को घेरने की कोशिश की। लेकिन सोयाबीन की एमएसपी की गारंटी और अन्य आर्थिक मुद्दे मतदाताओं पर असर नहीं डाल सके।

इस तरह महाराष्ट्र और यूपी के चुनावी नतीजे बताते हैं कि बीजेपी ने न केवल अपने मजबूत नेतृत्व और ध्रुवीकरण पर दांव खेला, बल्कि योजनाओं और संगठनात्मक ताकत का भी सही इस्तेमाल किया। मोदी-योगी की जोड़ी के नारे और महायुति की रणनीतियां इन चुनावों में निर्णायक साबित हुईं।

ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि क्या ये ध्रुवीकरण का नया दौर है? क्या बीजेपी की यह रणनीति अन्य राज्यों में भी सफल होगी? यह देखना दिलचस्प होगा।

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