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कौन होती हैं नागिन साध्वी… महाकुंभ में गंगा स्नान के वक्त क्यों करती हैं नागा साधु का इंतजार

नागिन साध्वी
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भारत का महाकुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन है। हर बार, इस पवित्र मेले में लाखों श्रद्धालु आते हैं और गंगा में डुबकी लगाते हैं। यहां नागा साधु (Naga Sadhus) और नागिन साध्वी (Nagin Sadhvis) विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं। लेकिन, क्या आपने सोचा है कि नागिन साध्वी कौन होती हैं और उनका जीवन कैसा होता है?

नागिन साध्वी 
नागिन साध्वी, नागा साधुओं की तरह ही एक तपस्विनी होती हैं, लेकिन उनका जीवन और भूमिका पुरुष नागा साधुओं से काफी अलग होता है। नागिन साध्वियां गृहस्थ जीवन से पूरी तरह अलग हो चुकी होती हैं और संन्यास का मार्ग अपना चुकी होती हैं। इनके जीवन का मुख्य उद्देश्य अध्यात्म, तपस्या और सेवा होता है।

महाकुंभ जैसे आयोजनों में नागिन साध्वियां अपनी उपस्थिति से न केवल श्रद्धालुओं को प्रेरित करती हैं, बल्कि अखाड़े की परंपराओं को भी सजीव बनाए रखती हैं। नागिन साध्वियों को अखाड़े की महिला नागा साधु भी कहा जाता है।

नागा साधु और नागिन साध्वी का जीवन
नागा साधु और नागिन साध्वी के जीवन में कई समानताएं हैं। दोनों को दीक्षा लेने से पहले कठोर ब्रह्मचर्य और तपस्या का पालन करना होता है। नागा साधुओं के लिए नग्न रहना परंपरा का हिस्सा है, लेकिन नागिन साध्वियां हमेशा वस्त्रधारी होती हैं।

नागिन साध्वी के वस्त्र केसरिया रंग के होते हैं, लेकिन सिले हुए नहीं होते। इसे “गंती” कहा जाता है। ये गंती उनका पूरा जीवन पहनावे के रूप में रहता है। नागिन साध्वी को दिन में केवल एक बार भोजन करने की अनुमति होती है, और उनका पूरा दिन पूजा-पाठ और ध्यान में व्यतीत होता है।

महाकुंभ में नागिन साध्वियों की भूमिका
महाकुंभ में नागिन साध्वियां शाही स्नान (Royal Bath) के दौरान विशेष रूप से भाग लेती हैं। ये साध्वियां नागा साधुओं के स्नान के बाद गंगा स्नान करती हैं। ये क्रम इस परंपरा का अभिन्न हिस्सा है।

महाकुंभ में नागिन साध्वियां अखाड़े के अन्य साधुओं और साध्वियों के साथ मिलकर भव्यता और आध्यात्मिकता को बढ़ाती हैं। नागा साधु और नागिन साध्वी दोनों ही गंगा स्नान को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मानते हैं।

नागिन साध्वी बनने की प्रक्रिया
नागिन साध्वी बनने के लिए महिलाओं को कई कठिन चरणों से गुजरना पड़ता है। इस प्रक्रिया में उन्हें पहले जीवित रहते हुए अपना पिंडदान करना होता है, जो ये दर्शाता है कि वे अपने सांसारिक जीवन को छोड़ चुकी हैं। इसके बाद, उन्हें मुंडन कराना पड़ता है और 10-15 वर्षों तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। दीक्षा के समय उन्हें “अवधूतानी” या “माई” कहकर संबोधित किया जाता है। ये संन्यास का सर्वोच्च रूप है।

नागिन साध्वी की चुनौतियां
नागिन साध्वी का जीवन अत्यंत कठोर और तपस्या से भरा होता है। उन्हें अपने आध्यात्मिक जीवन के साथ-साथ सामाजिक परंपराओं का भी पालन करना होता है। पीरियड्स के दौरान, वे गंगा स्नान नहीं करतीं, बल्कि गंगा जल को शरीर पर छिड़ककर शुद्धि करती हैं।

इन साध्वियों को पहाड़ों और गुफाओं में रहना होता है, जहां वे सांसारिक सुख-सुविधाओं से दूर रहती हैं। उनकी तपस्या और साधना का उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है।

नागिन साध्वियां भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनका जीवन त्याग, तपस्या और सेवा का प्रतीक है। महाकुंभ जैसे आयोजनों में उनकी उपस्थिति से भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक धरोहर को नई ऊंचाई मिलती है।

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