मुंबई

तेजस्वी यादव को लगातार दूसरी हार का सामना करना पड़ा, आरजेडी की कमजोर रणनीति आई सामने

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बिहार के पूर्णिया जिले की रूपौली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में एक महत्वपूर्ण परिणाम सामने आया है। निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह ने जेडीयू के कलाधर मंडल को 8,246 वोटों से हराकर जीत हासिल की। यह परिणाम राज्य की राजनीति में कई महत्वपूर्ण संकेत देता है।

इस चुनाव में आरजेडी की उम्मीदवार बीमा भारती, जो पहले पांच बार इस सीट से विधायक रह चुकी हैं, तीसरे स्थान पर रहीं। उनकी हार का प्रमुख कारण ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) वोटरों का समर्थन न मिलना माना जा रहा है। रूपौली में ईबीसी की आबादी 25% है, जबकि विजेता शंकर सिंह के समुदाय राजपूतों की आबादी केवल 7% है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि ईबीसी वोटरों ने अपनी ही जाति की उम्मीदवार को वोट नहीं दिया।

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुकेश साहनी के साथ गठबंधन करके ईबीसी समर्थन जुटाने की रणनीति अपनाई थी। लेकिन यह रणनीति सफल नहीं हुई। मल्लाह और गंगौता समुदायों के अलावा अन्य ईबीसी जातियों का बड़ा हिस्सा आरजेडी के साथ नहीं आया।

यह दूसरी बार है जब दो महीने के अंदर ईबीसी समुदाय ने आरजेडी को समर्थन नहीं दिया है। पहले लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार पप्पू यादव ने बीमा भारती को हराया था, और अब इस उपचुनाव में निर्दलीय शंकर सिंह ने जीत हासिल की है।

लोकसभा चुनावों में आरजेडी ने तीन ईबीसी उम्मीदवार उतारे थे – पूर्णिया से बीमा भारती, मुंगेर से अनीता देवी महतो और सुपौल से चंद्रहास चौपाल। लेकिन सभी हार गए। वीआईपी पार्टी के उम्मीदवारों का भी यही हाल रहा।

अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव के लिए चुनौतियां बढ़ती दिख रही हैं। ईबीसी समुदाय, जो राज्य की जनसंख्या का 36% है, परंपरागत रूप से नीतीश कुमार का वोट बैंक माना जाता है। आरजेडी अभी तक इस वर्ग में अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर पाई है। हालांकि पार्टी ने 4% कुशवाहा वोट बैंक में कुछ सफलता हासिल की है, लेकिन बड़े ईबीसी वोट बैंक में सफलता न मिलने से चुनावी राह कठिन हो सकती है।

रूपौली उपचुनाव का परिणाम बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह दर्शाता है कि ईबीसी वोटरों का समर्थन किसी भी दल की जीत के लिए महत्वपूर्ण है। आरजेडी को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने और ईबीसी समुदाय के साथ बेहतर संबंध बनाने की आवश्यकता है, अन्यथा आगामी चुनावों में उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

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