कनाडा और भारत के बीच राजनयिक तनाव ने एक नई दिशा ले ली है। हाल ही में भारत ने वीजा विवाद (Visa Vivad) को लेकर खालिस्तानी समर्थकों पर सख्त रुख अपनाया है। एक कनाडाई रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने खालिस्तानी समर्थकों को वीजा देने से तब तक इनकार कर दिया है, जब तक वे अलगाववाद का समर्थन नहीं छोड़ते।
यह कदम खालिस्तानी समर्थकों के बीच हलचल मचा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, वीजा पाने के लिए इन समर्थकों को एक फॉर्म पर हस्ताक्षर करना पड़ता है, जिसमें भारत की संप्रभुता का सम्मान और खालिस्तान से दूरी बनाने की शपथ शामिल है।
खालिस्तानी समर्थकों की शिकायतें
ग्लोबल न्यूज द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वीजा आवेदकों को भारतीय कांसुलर अधिकारियों द्वारा एक फॉर्म दिया गया। इस फॉर्म पर हस्ताक्षर करके उन्हें यह पुष्टि करनी होती है कि वे खालिस्तान का समर्थन नहीं करते और भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करते हैं।
गुरु नानक गुरुद्वारे के पूर्व अध्यक्ष बिक्रमजीत सिंह संधार ने कहा कि उनके वीजा आवेदन को 2016 में खारिज कर दिया गया था। संधार के मुताबिक, उनसे कहा गया कि वीजा पाने के लिए खालिस्तान अलगाववाद का त्याग करना अनिवार्य होगा। हालांकि, संधार ने इस फॉर्म पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
कुछ अन्य आवेदकों ने इस फॉर्म पर हस्ताक्षर किए और उन्हें वीजा मिल गया। लेकिन यह मामला अब खालिस्तानी समर्थकों के बीच तीखी प्रतिक्रियाओं और बहस का कारण बन गया है।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
इस खबर ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी है। कनाडाई राजनीतिक विश्लेषक डेनियल बोर्डमैन ने व्यंग्य करते हुए कहा कि भारत आतंकवाद का समर्थन करने वाले लोगों से पहले आतंकवाद छोड़ने का फॉर्म भरवा रहा है।
एक ट्विटर यूजर ने कनाडा की नीतियों पर निशाना साधते हुए कहा कि कनाडा भारतीय सैन्य कर्मियों से उनके सेवा स्थलों का विवरण मांगता है, लेकिन आतंकवादियों से कोई सवाल नहीं करता।
विश्लेषकों का यह भी कहना है कि हर देश वीजा प्रक्रिया में आवेदनकर्ताओं की पृष्ठभूमि की जांच करता है। ऐसे में भारत का यह कदम अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप है।
भारत का पक्ष और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा
विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत का यह कदम उसकी सुरक्षा को मजबूत करने का हिस्सा है। यह कोई नई बात नहीं है कि वीजा प्रक्रिया में किसी देश की सुरक्षा प्राथमिकता सबसे ऊपर होती है। अमेरिका और यूरोपीय देशों में वीजा प्रक्रिया इससे भी सख्त होती है।
भारत ने यह कदम उठाकर एक कड़ा संदेश दिया है कि वह अपनी संप्रभुता और सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा। हालांकि, यह विवाद कनाडा और भारत के पहले से तनावपूर्ण संबंधों को और जटिल बना सकता है।
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