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Mumbai Police Case Against Rapido: बिना सरकारी अनुमति के बाइक टेक्सी चलाने पर रैपिडो और उबर मुश्किल में, मुंबई पुलिस ने दर्ज की FIR

Mumbai Police Case Against Rapido: बिना सरकारी अनुमति के बाइक टेक्सी चलाने पर रैपिडो और उबर मुश्किल में, मुंबई पुलिस ने दर्ज की FIR

Mumbai Police Case Against Rapido, Uber: मुंबई की सड़कों पर तेजी से दौड़ने वाली बाइक टेक्सी सेवाएं, जो हर दिन हजारों लोगों को ट्रैफिक की जकड़न से राहत दिलाती हैं, अब कानूनी पचड़े में फंस गई हैं। रैपिडो और उबर जैसी कंपनियां, जिन्हें शहर की भीड़ में सस्ती और सुविधाजनक यात्रा का पर्याय माना जाता है, अब मुंबई पुलिस की जांच के दायरे में हैं। इन कंपनियों पर बिना सरकारी अनुमति के बाइक टेक्सी सेवाएं चलाने और यात्रियों को ढोने का आरोप है। यह खबर उन लाखों युवाओं के लिए चौंकाने वाली है, जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इन सेवाओं पर निर्भर हैं। आइए, इस पूरे मामले की गहराई में उतरकर समझते हैं कि आखिर क्या हुआ और क्यों हुआ।

मंगलवार, 18 जून 2025 को, मुंबई पुलिस ने आजाद मैदान पुलिस स्टेशन में रैपिडो और उबर के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया। यह कार्रवाही क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO) के एक इंस्पेक्टर की शिकायत पर आधारित थी। RTO अधिकारियों ने इन कंपनियों की सेवाओं की जांच के लिए कुछ फर्जी सवारी बुक की थीं, जिन्हें अंग्रेजी में “dummy rides” कहा जाता है। इन सवारी के दौरान यह पाया गया कि रैपिडो और उबर बिना किसी वैध लाइसेंस या सरकारी अनुमति के यात्रियों को ढो रहे थे। यह न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यात्रियों की सुरक्षा के साथ भी खिलवाड़ है।

परिवहन आयुक्त ने इन ऐप-आधारित सेवाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाही के आदेश दिए थे। पहले से ही अप्रैल में RTO ने रैपिडो को नोटिस जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि उनकी सेवाएं गैरकानूनी हैं। लेकिन, उस नोटिस का कोई खास असर नहीं हुआ। इसके बाद RTO ने एक बार फिर शिकायत दर्ज की, जिसमें बताया गया कि ये कंपनियां ऑनलाइन ऐप के जरिए बिना लाइसेंस के यात्रियों को ले जा रही हैं। इस शिकायत के आधार पर, मुंबई पुलिस ने भारतीय नवीन संहिता (BNS) की धारा 318(3) के तहत धोखाधड़ी और मोटर वाहन अधिनियम की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया।

यह मामला सिर्फ कागजी कार्रवाही तक सीमित नहीं है। इसके पीछे कई बड़े सवाल हैं। पहला, क्या बाइक टेक्सी सेवाएं वाकई में गैरकानूनी हैं? दूसरा, अगर ये गैरकानूनी हैं, तो इतने समय तक ये बिना रोकटोक कैसे चल रही थीं? और तीसरा, इस कार्रवाही का उन हजारों ड्राइवरों और यात्रियों पर क्या असर होगा, जो इन सेवाओं पर निर्भर हैं? इन सवालों का जवाब समझने के लिए हमें इस पूरे सिस्टम को करीब से देखना होगा।

मुंबई जैसे शहर में, जहां ट्रैफिक जाम रोज़ की बात है, बाइक टेक्सी सेवाएं एक वरदान की तरह हैं। ये न केवल सस्ती हैं, बल्कि छोटी-छोटी गलियों और भीड़भाड़ वाले इलाकों में आसानी से पहुंच सकती हैं। रैपिडो और उबर ने अपनी सेवाओं को “बाइक टेक्सी” (bike taxi) के रूप में प्रचारित किया, जिसने युवाओं और नौकरीपेशा लोगों को खूब आकर्षित किया। लेकिन, मोटर वाहन अधिनियम के अनुसार, ऐसी सेवाओं के लिए विशेष लाइसेंस और सरकारी अनुमति जरूरी है। इन कंपनियों के पास ऐसा कोई लाइसेंस नहीं था, जिसके कारण उनकी सेवाएं गैरकानूनी मानी गईं।

RTO के अनुसार, इन बाइक टेक्सी सेवाओं में इस्तेमाल होने वाली ज्यादातर बाइकें निजी वाहन के रूप में रजिस्टर्ड हैं। इन्हें पीले नंबर प्लेट वाले कमर्शियल वाहनों की तरह रजिस्टर होना चाहिए। बिना इस रजिस्ट्रेशन के यात्रियों को ढोना न केवल गैरकानूनी है, बल्कि असुरक्षित भी हो सकता है। अगर कोई हादसा होता है, तो यात्रियों को बीमा का लाभ नहीं मिलता। यह बात उन लोगों के लिए चिंता का विषय है, जो इन सेवाओं का रोज़ इस्तेमाल करते हैं।

इस कार्रवाही का एक और पहलू ड्राइवरों का है। रैपिडो और उबर के साथ जुड़े हजारों ड्राइवरों के लिए यह सेवा उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत है। इनमें से ज्यादातर युवा हैं, जो मुंबई जैसे महंगे शहर में अपनी रोज़ी-रोटी चलाने के लिए इन ऐप्स पर निर्भर हैं। अगर इन सेवाओं पर पूरी तरह रोक लगती है, तो इन ड्राइवरों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो सकता है। वहीं, यात्रियों को भी वैकल्पिक साधनों की तलाश करनी होगी, जो शायद उतने सस्ते या सुविधाजनक न हों।

मुंबई पुलिस की इस कार्रवाही ने एक बार फिर बाइक टेक्सी सेवाओं के नियमन पर बहस छेड़ दी है। कई लोग मानते हैं कि सरकार को इन सेवाओं को बैन करने की बजाय एक स्पष्ट नीति बनानी चाहिए, जिसमें ड्राइवरों और यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो। कुछ राज्यों जैसे दिल्ली और गोवा में बाइक टेक्सी सेवाओं के लिए नियम बनाए गए हैं, लेकिन महाराष्ट्र में अभी तक ऐसी कोई नीति नहीं है। यह कमी ही इस पूरे विवाद की जड़ है।

जांच अभी शुरुआती चरण में है। मुंबई पुलिस इस बात की तह तक जाएगी कि ये कंपनियां कितने समय से गैरकानूनी तरीके से काम कर रही थीं और क्या इसमें कोई और लोग भी शामिल हैं। RTO और पुलिस मिलकर यह भी सुनिश्चित करेंगे कि भविष्य में ऐसी गड़बड़ियां न हों। लेकिन, इस पूरे मामले ने एक बात साफ कर दी है—नए जमाने की तकनीक और पुराने नियमों के बीच तालमेल की कमी कई बार बड़े विवादों को जन्म देती है।

रैपिडो और उबर ने अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन, सोशल मीडिया पर लोग इस कार्रवाही को लेकर अपनी राय ज़ाहिर कर रहे हैं। कुछ लोग इसे सही ठहरा रहे हैं, तो कुछ इसे ड्राइवरों और यात्रियों के लिए झटका मान रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस मामले का क्या हल निकलता है और क्या ये कंपनियां अपने लिए कोई कानूनी रास्ता तलाश पाती हैं।

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