Ajit Pawar and Chhagan Bhujbal Clash: महाराष्ट्र कैबिनेट विवाद (Maharashtra Cabinet News) में इन दिनों उपमुख्यमंत्री अजित पवार और एनसीपी के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल के बीच राजनीतिक खींचतान चर्चा का विषय बनी हुई है। अजित पवार द्वारा हाल ही में माणिकराव कोकाटे को कृषि मंत्रालय सौंपने के फैसले से छगन भुजबल नाराज नजर आ रहे हैं। लेकिन यह नाराजगी सिर्फ विभाग के बंटवारे तक सीमित नहीं है; इसके पीछे गहरी राजनीतिक जड़ें दिखाई देती हैं।
विभाग बंटवारे में भुजबल की नाराजगी
कैबिनेट पोर्टफोलियो के बंटवारे में, अजित पवार ने छगन भुजबल को दरकिनार कर नासिक से विधायक माणिकराव कोकाटे को कृषि मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण विभाग सौंपा। भुजबल, जो लंबे समय तक पार्टी में एक मजबूत नेता रहे हैं, ने इस निर्णय पर खुलकर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, “जब मैं मंत्री था, अजित पवार ने मेरी स्थिति कमजोर करने के लिए विधायकों को इकट्ठा कर राजनीति की। अब भी वही किया जा रहा है।”
माणिकराव कोकाटे का पलटवार
नवनियुक्त कृषि मंत्री माणिकराव कोकाटे ने भुजबल की आलोचनाओं पर कड़ा पलटवार करते हुए कहा, “हमने कई साल मंत्री पद की प्रतीक्षा की। भुजबल इतने सालों तक मंत्री रहे और हमने हमेशा उनका समर्थन किया। अब हमें मौका मिला है, तो भुजबल को परेशानी क्यों हो रही है?” कोकाटे ने इसे पार्टी नेतृत्व का निर्णय बताया और इसे सहर्ष स्वीकार करने की सलाह दी।
अजित पवार: निर्णय पर कायम
अजित पवार को उनके स्पष्ट और दृढ़ फैसलों के लिए जाना जाता है। उनकी छवि एक ऐसे नेता की है जो किसी भी परिस्थिति में अपने निर्णय पर कायम रहते हैं। कृषि मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग को माणिकराव को सौंपने का उनका निर्णय उनके नेतृत्व कौशल और पार्टी के भीतर संतुलन बनाने की उनकी रणनीति को दर्शाता है। पवार के समर्थकों का मानना है कि यह कदम कृषि क्षेत्र में नई ऊर्जा लाएगा।
विवाद का कारण
छगन भुजबल की नाराजगी सिर्फ विभाग मिलने या न मिलने की बात नहीं है। इसके पीछे उनके लंबे समय तक पार्टी में रहे योगदान और वरिष्ठता को नजरअंदाज किए जाने का आक्रोश छिपा है। दूसरी ओर, अजित पवार ने यह स्पष्ट कर दिया कि पार्टी के हित में उन्होंने यह निर्णय लिया है।
महाराष्ट्र कैबिनेट विवाद (Maharashtra Cabinet News) ने राज्य की राजनीति में एक नई चर्चा को जन्म दिया है। अजित पवार ने जहां पार्टी के संतुलन और कृषि क्षेत्र में नए चेहरे को मौका देने की रणनीति अपनाई है, वहीं छगन भुजबल जैसे वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी पार्टी में असंतोष बढ़ा सकती है। इस विवाद के बीच यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले समय में पार्टी इस स्थिति को कैसे संभालती है।