ओडिशा में पहली बार भाजपा सरकार: ओडिशा की धरती पर राजनीतिक इतिहास का एक नया पन्ना जुड़ गया है। जहां एक ओर उत्तर प्रदेश में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, वहीं ओडिशा में पार्टी ने नवीन पटनायक के दुर्ग को ध्वस्त कर दिया है। लोकसभा और विधानसभा दोनों ही चुनावों में भाजपा ने अप्रत्याशित जीत हासिल की है।
देर रात तक चले मतगणना के रुझानों में लोकसभा की 21 में से 19 सीटों पर भाजपा ने विजय पताका फहराई। विधानसभा में भी, भाजपा ने 147 में से 78 सीटों पर बढ़त बनाकर बहुमत की सीमा को पार किया, जबकि बहुमत के लिए केवल 74 सीटों की आवश्यकता थी। इस जीत ने प्रधानमंत्री की उस घोषणा को सत्यापित किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि 04 जून को भाजपा को बहुमत मिलेगा।
बीजू जनता दल (बीजद), जो पिछले ढाई दशकों से नवीन पटनायक के नेतृत्व में सत्ता में थी, इस बार केवल 51 सीटों तक सिमट गई। नवीन पटनायक का दुर्ग, जो 24 वर्षों से अजेय था, भाजपा के चुनावी रणनीति के सामने ढह गया।
चुनावी विश्लेषणों में यह भी सामने आया कि भाजपा के साथ गठबंधन न हो पाने के कारण बीजद को बड़ा नुकसान हुआ। अल्पसंख्यक मतदाताओं का वोट बीजद से कटकर कांग्रेस और अन्य पार्टियों की ओर मुड़ गया।
प्रधानमंत्री मोदी की ओडिया अस्मिता की बात ने भी जनता के दिलों में गहरी छाप छोड़ी। बीजद के भीतर नवीन पटनायक के बाद सबसे प्रभावशाली माने जा रहे वीके पांडियन के सत्ता पर काबिज होने की चर्चा को भाजपा ने खूब उछाला। नवीन पटनायक की स्वास्थ्य स्थिति और उनके निष्क्रिय होने की बात को भी भाजपा ने जोर-शोर से प्रचारित किया।
इस चुनावी जीत ने ओडिशा की राजनीति में एक नई दिशा दिखाई है, और अब सभी की निगाहें नई सरकार के कार्यकाल और उसके विकास कार्यों पर टिकी हैं। भाजपा की इस ऐतिहासिक जीत ने न केवल ओडिशा बल्कि पूरे देश की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ दिया है।