Jharkhand Elections 2024: झारखंड में ऐसा राजनीतिक भूचाल आया कि सारे पुराने समीकरण ही बदल गए। जहां हर कोई सोच रहा था कि बीजेपी की जीत पक्की है, वहां आदिवासी वोट बैंक (Tribal Vote Bank) ने ऐसा करिश्मा दिखाया कि सब दंग रह गए। आइए जानते हैं इस रोचक राजनीतिक कहानी के हर पहलू को।
चुनावी मैदान का रंग ये कोई मामूली चुनाव नहीं था। एक तरफ बीजेपी के दिग्गज नेता अपनी पूरी ताकत के साथ, और दूसरी तरफ आदिवासी वोट बैंक (Tribal Vote Bank) की ताकत। सोचिए, 28 सीटों में से 27 पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। ये कोई छोटी बात नहीं है। हर सीट पर औसतन 20,000 से ज्यादा वोटों से हार! अरे वाह, क्या बात है!
आदिवासी समाज का जागरण पहले तो ये समझिए कि आदिवासी समाज ने इतना बड़ा फैसला क्यों लिया। बात सिर्फ वोट की नहीं थी, यह उनकी पहचान और अस्मिता का सवाल था। जब बीजेपी ने ‘लैंड जिहाद’ और ‘घुसपैठ’ के मुद्दे उठाए, तब आदिवासी समाज ने सोचा – अरे भाई, हमारी असली समस्याएं तो कुछ और हैं!
हेमंत सोरेन की मास्टर स्ट्रैटजी अब आप सोच रहे होंगे कि हेमंत सोरेन ने ऐसा क्या जादू कर दिया? उनकी रणनीति बिल्कुल शतरंज की चाल जैसी थी। पहला दांव – घुसपैठ का मुद्दा केंद्र पर डाल दिया। बोले – भाई, सीमा की रक्षा तो केंद्र सरकार का काम है, हम क्या करें? दूसरा दांव – हिमंता बिस्वा सरमा को बाहरी बता दिया। कहा – असम में तो खुद नहीं संभाल पाए, यहां क्या करेंगे? और तीसरा, सबसे बड़ा दांव – झारखंड की अस्मिता का मुद्दा। जब बीजेपी ने संथाल परगना को अलग करने की बात की, बस फिर क्या था!
संथाल परगना का महासंग्राम यहां तो कमाल ही हो गया। झारखंड में आदिवासी राजनीतिक शक्ति (Tribal Political Power in Jharkhand) का ऐसा प्रदर्शन कि राजनीतिक पंडित भी हैरान रह गए। 18 में से 17 सीटें! और वो भी कैसे? 52% वोट शेयर के साथ। 2019 से 12% ज्यादा! ये कोई मामूली बात है क्या? हर बूथ पर आदिवासी समाज का जोश देखने लायक था।
बीजेपी के गढ़ में सेंध अब ये सुनिए। खूंटी में क्या हुआ, वो तो किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था। पांच बार के विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा, 42,000 वोटों से हार गए। पोटका में अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा की हार तो और भी चौंकाने वाली थी। राजमहल में अनंत कुमार ओझा, जो 2009 से अजेय थे, वो भी 43,000 वोटों से हार गए।
लोक सभा चुनाव का संकेत और एक दिलचस्प बात। ये नतीजे आने वाले लोक सभा चुनाव के लिए क्या संकेत दे रहे हैं? आदिवासी समाज का यह जागरण क्या बड़े बदलाव की शुरुआत है? ये सवाल हर राजनीतिक विश्लेषक के दिमाग में चल रहे हैं।
चुनावी रणनीतियों का खेल बीजेपी ने पूरा जोर लगाया – बड़े-बड़े नेता, जोरदार प्रचार, भावनात्मक मुद्दे। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और थी। आदिवासी समाज ने दिखा दिया कि उनकी समझ किसी से कम नहीं है। हर गांव, हर बस्ती में लोगों ने अपनी राय बनाई और उसी के हिसाब से वोट किया।