MHADA Acts on 96 Dangerous Buildings: मुंबई, जिसे सपनों का शहर कहा जाता है, अपनी चमक-दमक के साथ-साथ कई चुनौतियों का भी सामना करता है। इनमें से एक बड़ी चुनौती है शहर की पुरानी और खतरनाक इमारतें, जिन्हें हर साल मानसून से पहले जांचा जाता है। 19 जून 2025 को, महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (म्हाडा) ने दक्षिण मुंबई की 96 सेस्ड इमारतों को अत्यधिक खतरनाक घोषित किया। इन इमारतों में रहने वाले परिवारों के लिए म्हाडा ने सख्त कदम उठाने का फैसला किया है। इन खतरनाक इमारतों (Dangerous Buildings) में पानी और बिजली की आपूर्ति बंद करने का निर्णय लिया गया है, ताकि निवासियों को जल्द से जल्द सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जा सके। यह कदम न केवल निवासियों की सुरक्षा के लिए है, बल्कि मानसून के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए भी जरूरी है।
हर साल मानसून से पहले, म्हाडा का मुंबई बिल्डिंग रिपेयर एंड रिकंस्ट्रक्शन बोर्ड दक्षिण मुंबई की पुरानी इमारतों का सर्वे करता है। इस सर्वे में यह देखा जाता है कि कौन सी इमारतें रहने के लिए सुरक्षित नहीं हैं। इस साल की जांच में 96 इमारतें ऐसी पाई गईं, जो इतनी जर्जर हैं कि उनके गिरने का खतरा बना हुआ है। इन इमारतों को ’79 ए’ नियम के तहत पुनर्विकास (Building Redevelopment) के लिए चिह्नित किया गया है। निवासियों को नोटिस जारी कर घर खाली करने को कहा गया, लेकिन कई परिवारों ने इन नोटिसों का जवाब नहीं दिया। वे अब भी इन खतरनाक इमारतों में रह रहे हैं। ऐसे में, बोर्ड ने अब कठोर कदम उठाने का फैसला किया। जल्द ही इन इमारतों की पानी और बिजली की आपूर्ति बंद कर दी जाएगी।
दक्षिण मुंबई में करीब 14,000 सेस्ड इमारतें हैं, जो पुरानी और जर्जर स्थिति में हैं। मानसून के दौरान इन इमारतों में रहना जोखिम भरा होता है, क्योंकि बारिश के कारण दीवारें कमजोर हो सकती हैं और इमारतें ढह सकती हैं। हर साल, बोर्ड इन इमारतों की सूची तैयार करता है और निवासियों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने की व्यवस्था करता है। इस साल की सूची में शामिल 96 इमारतें अब तक की सबसे बड़ी संख्या में अत्यधिक खतरनाक श्रेणी में आई हैं। इन इमारतों में रहने वाले 2577 परिवारों को स्थानांतरित करना बोर्ड के लिए एक बड़ी चुनौती है।
म्हाडा के पास अपने ट्रांजिट कैंपों में केवल 700 घर उपलब्ध हैं, जो इतने बड़े पैमाने पर विस्थापन के लिए पर्याप्त नहीं हैं। उदाहरण के लिए, अगर एक इमारत में 50 परिवार रहते हैं और उसे खाली करना पड़ता है, तो इन परिवारों को तुरंत नया आश्रय देना आसान नहीं है। बोर्ड ने इस समस्या से निपटने के लिए दो विकल्प सामने रखे हैं। पहला, निवासियों को 20,000 रुपये प्रति माह किराए के रूप में दिए जाएंगे, ताकि वे किराए पर दूसरी जगह रह सकें। दूसरा, 500 नए घर किराए पर लिए जाएंगे, जिन्हें ट्रांजिट कैंप के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। लेकिन मानसून की तीव्रता को देखते हुए समय बहुत कम है, और घरों को जल्द से जल्द खाली करना जरूरी है।
इन इमारतों में रहने वाले परिवारों की कहानियाँ दिल को छू लेती हैं। कई परिवार दशकों से इन इमारतों में रह रहे हैं। ये लोग पगड़ी सिस्टम के तहत किराएदार हैं, जिनके लिए नया घर ढूंढना आसान नहीं है। कुछ परिवारों का कहना है कि उनके पास जाने के लिए कोई और जगह नहीं है। वहीं, कुछ लोग इमारतों को खतरनाक घोषित करने की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हैं। वे चाहते हैं कि बीएमसी के पैनल में शामिल स्ट्रक्चरल ऑडिटर इन इमारतों की दोबारा जांच करें। लेकिन बोर्ड का कहना है कि सर्वे पूरी सावधानी से किया गया है, और निवासियों की सुरक्षा के लिए तुरंत कदम उठाना जरूरी है।
म्हाडा ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगर निवासी नोटिस के बाद भी घर खाली नहीं करते, तो बिजली और पानी की आपूर्ति बंद करने की कार्रवाई शुरू होगी। इसके लिए जल्द ही बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) और बेस्ट को पत्र भेजा जाएगा। अगर इसके बाद भी लोग नहीं मानते, तो पुलिस बल की मदद से इमारतों को खाली कराया जा सकता है। यह कदम कठोर लग सकता है, लेकिन इसका मकसद है लोगों की जान बचाना।
पिछले कुछ सालों में, मुंबई में जर्जर इमारतों के ढहने से कई हादसे हो चुके हैं। हर साल मानसून में ऐसी खबरें सामने आती हैं, जहां पुरानी इमारतों का एक हिस्सा या पूरी इमारत ढह जाती है। इन हादसों में कई बार जान-माल का नुकसान होता है। इसीलिए, म्हाडा और बीएमसी मिलकर इन खतरनाक इमारतों (Dangerous Buildings) को चिह्नित करते हैं और उनके पुनर्विकास (Building Redevelopment) की प्रक्रिया शुरू करते हैं। इस साल 96 इमारतों की सूची ने एक बार फिर इस समस्या की गंभीरता को उजागर किया है।
इन इमारतों के पुनर्विकास के लिए नियमों को और सख्त किया गया है। डेवलपमेंट कंट्रोल एंड प्रमोशन रेगुलेशंस (डीसीपीआर) 2034 के तहत, सेस्ड इमारतों के किराएदारों को कम से कम 405 वर्ग फुट का घर देना अनिवार्य है। यह नियम सुनिश्चित करता है कि पुनर्विकास के बाद निवासियों को बेहतर रहने की सुविधा मिले। लेकिन इसके लिए पहले इन इमारतों को खाली करना जरूरी है, और यही सबसे बड़ी चुनौती है।
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