सरकारी स्कूल हो या प्राइवेट स्कूल, गरीब परिवार के बच्चों की पढ़ाई पर सरकार के नए नियम ने बवाल खड़ा कर दिया है। पहले प्राइवेट स्कूलों में 25% सीटें आरक्षित होती थीं… लेकिन अब क्या होगा? पढ़िए पूरी खबर…
आपको तो पता है, RTE यानी ‘राइट टू एजुकेशन’ कानून के तहत प्राइवेट स्कूल अपनी कुछ सीटें गरीब बच्चों के लिए रखते हैं। इन बच्चों की फीस सरकार उठाती है। इससे समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के बच्चों को भी अच्छी एजुकेशन मिल जाती है।
नए नियम में पेंच कहां है?
महाराष्ट्र में जो RTE का नया नियम आया है, उसके हिसाब से ये होगा कि सबसे पहले गवर्नमेंट स्कूल, और फिर सरकारी मदद वाले स्कूल… इनमें अगर सीटें खाली रहेंगी तो ही प्राइवेट स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए एडमिशन होगा।
मतलब साफ है कि जिस इलाके में अच्छे सरकारी या सरकारी मदद वाले स्कूल होंगे, वहां प्राइवेट स्कूल में दाखिला मिलना मुश्किल हो जाएगा।
प्राइवेट स्कूल वाले खुश हैं, क्योंकि कई स्कूलों की तरफ से सरकार पर फीस बकाया होने के आरोप थे। इस नियम से उन्हें राहत मिलेगी।
क्यों हो रहा है विरोध?
विपक्षी नेताओं, शिक्षाविदों, और समाज सेवकों का कहना है कि इस नए नियम से पढ़ाई में गरीब-अमीर का फर्क और भी बढ़ जाएगा।
उनका तर्क है कि सभी इलाकों में सरकारी स्कूलों की हालत अच्छी नहीं है। ऐसे में गरीब माता-पिता के पास क्या चारा होगा?
क्या ये RTE कानून के साथ खिलवाड़ नहीं है? क्या इससे पढ़ाई सबके लिए बराबर वाली सोच पर चोट नहीं लगे रही है?
सरकारी पक्ष का तर्क: सरकार का कहना है कि उनका मकसद सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाना है। साथ ही, प्राइवेट स्कूलों की फीस के बकाए को कम करना है।
क्या बदलेगी व्यवस्था? इस नए नियम से स्कूल एडमिशन की पूरी प्रक्रिया बदल जाएगी। पहले सीट मिलने के बाद बच्चे का एडमिशन होता था, पर शायद अब ऐसा नहीं होगा!