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ठाणे की चुनावी जंग: आनंद दिघे की विरासत पर शिवसेना का दंगल!

ठाणे की चुनावी जंग: आनंद दिघे की विरासत पर शिवसेना का दंगल!

महाराष्ट्र के ठाणे जिले में आगामी लोकसभा चुनाव एक रोचक मुकाबले का गवाह बनने जा रहा है। यहां शिवसेना के दो गुटों – एकनाथ शिंदे गुट और उद्धव ठाकरे गुट के बीच आमने-सामने की लड़ाई देखने को मिल रही है। इस लड़ाई का केंद्र बिंदु एक सवाल है – “आनंद दिघे का असली शिष्य कौन है?”

आनंद दिघे ठाणे में शिवसेना के दिग्गज नेता थे जिन्होंने इस इलाके में पार्टी की नींव रखी थी। उनका निधन हो चुका है लेकिन दोनों गुटों ने चुनावी प्रचार में उनकी छाप और विरासत को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की है।

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने एक चुनावी रैली में उद्धव ठाकरे पर गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “जब मैंने दिघे साहब के निधन के बाद पहली बार उद्धव जी से मुलाकात की तो उन्होंने पूछा कि आनंद दिघे की संपत्तियां कहां हैं।” शिंदे के इस आरोप से उद्धव गुट नाराज है।

इस पर उद्धव गुट के ठाणे प्रत्याशी राजन विचारे ने जवाब देते हुए शिंदे पर जोरदार हमला बोला। विचारे ने कहा, “आप दिघे साहब की दाढ़ी और अंदाज तो अपना सकते हैं लेकिन इससे आप उनके जैसा नहीं बन जाते। आनंद दिघे की तरह मेहनत करनी होगी।”       

दरअसल, ठाणे न केवल आनंद दिघे का गढ़ रहा है बल्कि शिवसेना का भी एक मजबूत गढ़ रहा है। शिवसेना की राजनीतिक शुरुआत 1967 में ठाणे से ही हुई थी। उस समय उसने नगरपालिका की 40 सीटों में से 17 सीटें जीती थीं और सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। आगे चलकर भी ठाणे जिला शिवसेना का गढ़ बना रहा।  

आनंद दिघे शिवसेना के ठाणे जिला प्रमुख थे और उन्होंने लोहे की मुट्ठी से जिले पर शासन किया। उन्होंने कई नए नेताओं को प्रशिक्षित किया जिनमें एकनाथ शिंदे और राजन विचारे भी शामिल थे। शिंदे दिघे के राजनीतिक शिष्य थे। 1997 में दिघे ने ही शिंदे को ठाणे नगर निगम से चुनाव लड़वाया था।

लेकिन अब दोनों ही दिघे की विरासत पर दावा कर रहे हैं। शिंदे गुट और उद्धव गुट दोनों ही आनंद दिघे के नाम पर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में ठाणे के वोटरों के लिए यह तय करना मुश्किल होगा कि दिघे का “असली शिष्य” कौन है।

विशेषज्ञों के अनुसार, यही इस चुनावी मुकाबले की सबसे बड़ी चुनौती है। ऐतिहासिक रूप से ठाणे शिवसेना का गढ़ रहा है। ऐसे में वोटर किस गुट को अपना वोट देंगे, यह देखना दिलचस्प होगा। साथ ही यह भी देखना होगा कि दोनों गुट आनंद दिघे के विरासत को अपने हित में कैसे इस्तेमाल करते हैं।

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