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UP Madrasa Act: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जानें क्‍यों है मदरसों के लिए राहत का कारण

UP Madrasa Act: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जानें क्‍यों है मदरसों के लिए राहत का कारण
सुप्रीम कोर्ट का हाल ही में आया फैसला उत्तर प्रदेश के मदरसों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के पहले के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट (UP Madrasa Act) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है।

इस फैसले के बाद राज्य के 16,000 मदरसे जो 17 लाख छात्रों को तालीम दे रहे हैं, अब बिना किसी रुकावट के जारी रह सकेंगे। कोर्ट के इस निर्णय को अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक अधिकारों के संरक्षण में अहम माना जा रहा है, जिससे सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Supreme Court Decision) चर्चा का विषय बन गया है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले की कहानी: क्यों उठे थे मदरसों पर सवाल?

मदरसों में दीनी तालीम को लेकर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। मार्च में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट (UP Madrasa Act) को असंवैधानिक करार दिया था और कहा था कि मदरसों को सरकारी अनुदान देना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है। हाई कोर्ट के इस आदेश में कहा गया था कि सरकार को चाहिए कि सभी मदरसा छात्रों को राज्य के आम स्कूलों में दाखिल करवाए।

इस फैसले के बाद यूपी के हजारों मदरसों पर संकट के बादल मंडराने लगे थे, क्योंकि इनके तहत काम कर रहे करीब 10,000 शिक्षकों और लाखों छात्रों का भविष्य खतरे में आ सकता था। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, और अंततः कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Supreme Court Decision) दिया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: मदरसे अब धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ नहीं

सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने यह स्पष्ट किया कि यूपी मदरसा एक्ट (UP Madrasa Act) के तहत मदरसों की कार्यप्रणाली पर सरकार के नियमों का पालन तो होगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इन संस्थानों के धार्मिक चरित्र को नुकसान पहुंचाया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि हर धर्म के अपने शैक्षणिक संस्थान होते हैं और सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Supreme Court Decision) इसी सिद्धांत का सम्मान करता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अल्पसंख्यक संस्थानों के शैक्षणिक अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए, ताकि वे अपने धार्मिक पहचान को बरकरार रखते हुए तालीम दे सकें।

मदरसों का तर्क: दीनी तालीम के बिना समाज अधूरा

मदरसों का कहना है कि वे केवल धार्मिक शिक्षा तक सीमित नहीं हैं। इनमें दीनी तालीम के साथ साथ आधुनिक शिक्षा का भी प्रावधान होता है। मदरसे कई दशकों से धार्मिक तालीम देते आ रहे हैं और समाज के एक महत्वपूर्ण हिस्से की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

यूपी मदरसा एक्ट (UP Madrasa Act) के तहत ये संस्थान सरकारी नियमों का पालन तो कर रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनके धार्मिक पहलुओं में दखलअंदाजी की जाए। इस एक्ट की वैधता बरकरार रखने से मदरसों के अस्तित्व और उनकी तालीम पर कोई नकारात्मक असर नहीं होगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का महत्व: अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षण

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा कि शिक्षा का अधिकार हर नागरिक का हक है और सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Supreme Court Decision) इसी को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार को मदरसों के शिक्षा के मानदंड निर्धारित करने की अनुमति है, ताकि गुणवत्ता बरकरार रखी जा सके। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह नियम मदरसों के रोजमर्रा के कामकाज में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा।

इस फैसले का असर न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश के मदरसों पर देखा जा सकता है, क्योंकि इससे अल्पसंख्यक संस्थानों को यह भरोसा मिला है कि उनकी पहचान और तालीम को सुरक्षित रखा जाएगा। कोर्ट के इस कदम ने धार्मिक और शैक्षणिक संस्थानों के बीच संतुलन कायम करने का एक नया रास्ता खोला है।

इस फैसले के बाद उत्तर प्रदेश के हजारों मदरसे बिना किसी डर के अपनी तालीम जारी रख सकेंगे। यूपी मदरसा एक्ट (UP Madrasa Act) पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Supreme Court Decision) राज्य में अल्पसंख्यकों की शिक्षा व्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है और सभी को समान अधिकार देने के सिद्धांत का समर्थन करता है।

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