महाराष्ट्र

नागपुर: धान उत्पादक किसानों को बोनस की प्रतीक्षा: 6 महीने बाद भी खाली हाथ

नागपुर
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नागपुर: महाराष्ट्र के धान उत्पादक किसान आजकल एक अनिश्चित इंतजार में हैं। दरअसल पिछले साल नागपुर में आयोजित शीतकालीन सत्र के दौरान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने धान उत्पादक किसानों के लिए प्रति हेक्टेयर 20 हजार रुपये बोनस देने की बड़ी घोषणा की थी। लेकिन 6 महीने बीत जाने के बाद भी ये वादा हवा में लटका हुआ है। राज्य के 5 लाख 48 हजार 782 किसान, जिनमें गोंदिया जिले के 1 लाख 52 हजार 313 किसान शामिल हैं, इस बोनस के इंतजार में अपनी आर्थिक योजनाओं को टाल रहे हैं।

बोनस का वादा: उम्मीद की किरण
गौरतलब है कि सरकारी धान खरीद केंद्रों पर धान बेचने वाले किसानों को प्रोत्साहन के रूप में ये बोनस दिया जाना था। सरकार ने दो हेक्टेयर तक की सीमा के साथ प्रति हेक्टेयर 20 हजार रुपये की राशि तय की थी। इस घोषणा ने किसानों में एक नई उम्मीद जगाई थी। खेती-किसानी में बढ़ती लागत और अनिश्चित मौसम के बीच ये बोनस किसानों के लिए आर्थिक राहत का एक बड़ा जरिया बन सकता था। लेकिन अब, छह महीने बाद भी, किसानों के बैंक खातों में बोनस की राशि जमा नहीं हुई है।

गोंदिया के किसानों की पुकार
गोंदिया जिले के धान उत्पादक किसान राजेश चांदेवार ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा, “हमने सरकार के भरोसे धान की बिक्री की, लेकिन बोनस का पैसा अभी तक नहीं मिला। खेती के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है, और बिना बोनस के आर्थिक तंगी बढ़ती जा रही है।” गोंदिया जैसे धान उत्पादन के प्रमुख क्षेत्रों में किसानों की ये मांग अब जोर पकड़ रही है कि सरकार जल्द से जल्द बोनस की राशि उनके खातों में जमा करे।

आर्थिक तंगी का संकट
बोनस की देरी ने न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया है, बल्कि उनकी अगली फसल की तैयारी पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। कई किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं, और बोनस की राशि उनके लिए एक महत्वपूर्ण सहारा हो सकती थी। गोंदिया के किसानों का कहना है कि सरकार को इस मामले में तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि उनकी मेहनत का उचित मूल्य उन्हें मिल सके।

सरकार से अपील
किसानों ने सरकार से मांग की है कि बोनस की राशि जल्द से जल्द उनके खातों में जमा की जाए। साथ ही, भविष्य में ऐसी देरी न हो, इसके लिए पारदर्शी और समयबद्ध प्रक्रिया स्थापित करने की जरूरत है। क्या सरकार इस बार किसानों की पुकार सुनेगी, या ये वादा भी अधूरा रह जाएगा? ये सवाल हर उस किसान के मन में है, जो अपने मेहनत के फल की प्रतीक्षा में है।

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