मुंबई में अमीरों के तो प्राइवेट अस्पताल भरे पड़े हैं, पर आम आदमी का क्या? सालों से एक 85 साल के डॉक्टर साहब लड़ रहे थे अंधेरी में एक प्लॉट के लिए, ताकि गरीबों के इलाज के लिए बढ़िया हॉस्पिटल खड़ा हो सके। पर सरकारी बाबुओं ने नाकों चने चबवा दिए!
मामला ये है कि डॉ. बालवंत केरकर नाम के हैं। पहले तो इनके ट्रस्ट ने हॉस्पिटल के लिए प्लॉट का ऐप्लीकेशन दिया, वो रिजेक्ट! फिर सालों बाद प्लॉट हॉस्पिटल के लिए रिजर्व हुआ…पर बाबुओं ने वो प्लॉट किसी और को देने की सोच ली। केरकर साहब कोर्ट पहुंचे, लंबी लड़ाई चली।
केस तो वो जीत गए, पर जमीन नहीं मिली! एक बार तो नेताओं ने धोखा भी दिया – दूसरी जगह जमीन देने का वादा करके मुकर गए। ये केरकर साहब भी जिद्दी निकले, दोबारा कोर्ट गए, और फाइनली 25 साल की लड़ाई के बाद अपना हक पा ही लिया!
अब इस हॉस्पिटल को टाटा ट्रस्ट का कर्किनोस हेल्थकेयर मैनेज करेगा। टाटा हॉस्पिटल के डॉक्टर्स भी यहां काम करेंगे। मतलब, कैंसर के मरीजों को तो फायदा होगा ही, बाकी बीमारियों के लिए भी सस्ते में बढ़िया इलाज मिल जाएगा।
देखते हैं ये अस्पताल कब तक बनता है, और वाकई में गरीबों को कितना फायदा पहुंचाता है। मुंबई में तो अमीरों और नेताओं के लिए तो हॉस्पिटल की कोई कमी नहीं है, पर आम आदमी की कौन सुनता है? चलो, कम से कम एक डॉक्टर साहब ने तो हिम्मत दिखाई!