Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई की सिटी सिविल कोर्ट में लंबित मामलों की भारी संख्या पर चिंता जताई है। कोर्ट ने स्टाफ और जजों की कमी, और विशेष तौर पर PMLA जैसे मामलों के लिए जजों के अभाव पर भी ध्यान दिया है। इस स्थिति से निपटने के लिए, हाईकोर्ट ने कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल (RG) से उचित कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।
ये निर्देश हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (HDIL) के राकेश और सारंग वाधवन की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया है। वाधवन बंधुओं पर पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (PMC) बैंक धोखाधड़ी मामले में मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने केस दर्ज किए हैं।
जस्टिस एस.एम. मोडक ने जमानत देते समय कहा कि, अभियोजन पक्ष और आरोपी के अधिकारों के बीच संतुलन बनाना जरूरी है, लेकिन साथ ही आरोपी को त्वरित सुनवाई का भी अधिकार है। लंबे समय से जेल में बंद आरोपियों के मुकदमे में देरी कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है। कोर्ट ने वाधवन बंधुओं को दोनों मामलों में 5-5 लाख रुपये के मुचलके पर जमानत दे दी।
कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल से सिटी सिविल कोर्ट में लंबित मामलों की स्थिति, तैनात कर्मचारियों और न्यायाधीशों की संख्या की समीक्षा करने को कहा है। जस्टिस मोडक ने कहा कि त्वरित न्याय में न्यायाधीशों की उपलब्धता भी एक अहम कारक है, और मुकदमों के सही से निपटारे के लिए बचाव पक्ष का सहयोग भी जरूरी है।
जस्टिस मोडक ने रेखांकित किया कि इस तरह के मामलों से निपटने के लिए अदालतों की संख्या कम होना भी मुकदमों में देरी का एक बड़ा कारण है। मुकदमा कब शुरू होगा, यह तय नहीं होने के कारण किसी व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से लंबे समय के लिए वंचित नहीं रखा जा सकता। (Bombay High Court)