मुंबई के विकास में एक बड़ा पेच फंस गया है. शहर में दो बड़ी संस्थाएं आमने-सामने हैं – बृहन्मुंबई महानगर पालिका (BMC) और स्लम रिहैबिलिटेशन अथॉरिटी (SRA). इन दोनों के बीच अचानक छिड़ी है जंग – वो भी विकास की अनुमति को लेकर.
आरोप है कि SRA अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर के विकास परियोजनाओं को मंजूरी दे रही है. BMC का कहना है कि SRA सिर्फ स्लम पुनर्विकास और जरूरतमंदों के लिए अस्थायी आवास बनाने का काम देख सकती है. लेकिन, वो बड़े-बड़े निर्माण प्रोजेक्ट्स को भी हरी झंडी दिखा रही है.
अगर BMC की बात सच है, तो ये महाराष्ट्र क्षेत्रीय और टाउन प्लानिंग एक्ट (MRTP Act) के उल्लंघन का सीधा मामला बनता है. ये कानून ही शहर के विकास का नक्शा खींचता है और बताता है कि कहां क्या बनाया जा सकता है.
इस पूरे मामले को BMC कमिश्नर भूषण गगराणी ने उठाया है. उन्होंने इसी महीने SRA के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर को एक चिट्ठी लिखकर सख्त लहजे में कहा है कि, “ये आपकी मनमानी नहीं चल सकती! आप नियमों को ताक पर रखकर के विकास को मंजूरी नहीं दे सकते.” नहीं तो आप खुद ही कानून का उल्लंघन कर रहे हैं.
गगराणी ने ये भी आरोप लगाया है कि SRA ने हाल ही में जो कुछ परियोजनाओं को मंजूरी दी है, वो 2034 के डेवलपमेंट प्लान और डेवलपमेंट कंट्रोल एंड प्रमोशन रेगुलेशन्स (DCPR) को दरकिनार कर के दी गई हैं.
BMC की ये चिंता जायज़ है. बिना उचित अनुमति के दिए गए निर्माण कार्यों से भविष्य में कई तरह की दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं. सबसे बड़ा खतरा तो सुरक्षा का ही है. अगर किसी भी निर्माण का नक्शा और उसका ढांचा पहले से तयशुदा नियमों के हिसाब से नहीं बनाया गया, तो ऐसी इमारतें कभी भी हादसे का सबब बन सकती हैं.
इसके अलावा, अगर ये मामला कोर्ट कचहरी तक पहुंचा, तो भी ये परियोजनाएं अटक सकती हैं. कोर्ट SRA को दी गई अनुमति को रद्द भी कर सकता है, जिससे करोड़ों रुपए का नुकसान होगा और प्रोजेक्ट पूरा होने में भी देरी होगी.
BMC ने इस मामले को शहरी विकास विभाग (UDD) के सामने भी रख दिया है. अब देखना ये है कि SRA, BMC की बात मानती है या अपने फैसले पर अड़ी रहती है. उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों संस्थाएं मिल बैठकर इस पेचीदा मामले को सुलझा लें ताकि मुंबई का विकास सही दिशा में हो सके.
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