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Mumbai Voter Turnout: चुनाव आयोग की कोशिशों के बावजूद क्यों नहीं निकले मुंबईकर वोट डालने?

Mumbai Voter Turnout: चुनाव आयोग की कोशिशों के बावजूद क्यों नहीं निकले मुंबईकर वोट डालने?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के दौरान एक बार फिर से मुंबई में वोटिंग का प्रतिशत कम ही रहा। मुंबई का वोटिंग प्रतिशत (Mumbai Voter Turnout) चुनाव आयोग (ECI) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, मुंबई शहर में केवल 49.07% और मुंबई उपनगर में 51.92% मतदाताओं ने वोट डाले। यह आंकड़ा राज्य के औसत 58.41% वोटिंग प्रतिशत से काफी कम है।

विशेष रूप से, कोलाबा और मुम्बादेवी जैसे क्षेत्रों में स्थिति और भी चिंताजनक रही, जहां क्रमशः 41.64% और 46.10% वोटिंग हुई। इसके विपरीत, अन्य शहरी क्षेत्रों जैसे चांदिवली और वर्सोवा ने भी निराशाजनक प्रदर्शन किया, जहां क्रमशः 47.05% और 47.45% वोट पड़े।

यह समस्या केवल विधानसभा चुनाव तक सीमित नहीं है। लोकसभा चुनाव 2024 में भी मुंबई ने केवल 52.4% वोटिंग की, जो 2019 के 55.4% से 3% कम थी। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि मुंबई में चुनावी उदासीनता (Mumbai Urban Apathy) अब एक स्थायी समस्या बन गई है।

चुनाव आयोग के प्रयास: क्या मुंबईकरों को वोटिंग के लिए प्रेरित कर सके?

चुनाव आयोग ने इस बार मुंबई में मतदाता जागरूकता बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। मतदान को सुगम और आकर्षक बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए गए:

सुविधाओं का विस्तार: मतदान केंद्रों पर पीने के पानी, प्रतीक्षालय, पंखे, टॉयलेट और व्हीलचेयर जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं।

जन-जागरूकता अभियान: मतदाताओं को जागरूक करने के लिए बड़े स्तर पर प्रचार किया गया।

‘डेमोक्रेसी डिस्काउंट’ योजना: मुंबई के 50 से अधिक रेस्टोरेंट्स ने वोटर्स को उनके बिल पर खास छूट दी।

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने मतदान की तारीख को सप्ताह के बीच में रखने का कारण बताते हुए कहा कि इससे अधिक लोग वोट डालने के लिए प्रेरित होंगे।

हालांकि, इन सभी प्रयासों के बावजूद, आंकड़े यह दिखाते हैं कि जनता की भागीदारी में बहुत सुधार नहीं हुआ।

मुंबईकरों का वोटिंग से परहेज: क्या कहते हैं लोग?

मुंबई के कम मतदान का कारण केवल उदासीनता नहीं है। इसके पीछे कई सामाजिक और राजनीतिक कारण छिपे हैं। मुंबई के मतदाता (Mumbai Voters) ने अपनी समस्याएं और नाराजगी अलग-अलग तरीकों से व्यक्त की।

उम्मीदवारों पर भरोसे की कमी:
कोलाबा जैसे क्षेत्रों में कई मतदाताओं ने यह कहा कि वे किसी भी उम्मीदवार को अपना वोट देने के लिए उपयुक्त नहीं मानते। यह चुनावी प्रक्रिया से उनकी निराशा को दर्शाता है।

विकास की कमी और महंगाई:
धारावी और मानखुर्द जैसे क्षेत्रों में रहने वाले लोग बुनियादी जरूरतों की कीमतों में बढ़ोतरी से परेशान हैं। 40 वर्षीय गृहिणी सावित्रा ने कहा, “आवश्यक वस्तुएं बहुत महंगी हो गई हैं। नेता केवल वोट मांगने आते हैं, लेकिन फिर गायब हो जाते हैं।”

दिहाड़ी मजदूरों की मुश्किलें:
झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले कई दिहाड़ी मजदूरों ने लंबी लाइनों में खड़े होने की असमर्थता जताई। उनका कहना था कि वे काम छोड़कर वोटिंग के लिए समय नहीं निकाल सकते।

मतदाता सूची में गड़बड़ी:
बड़ी संख्या में लोगों के नाम वोटर लिस्ट में नहीं थे। यह समस्या वर्षों से चली आ रही है और इस बार भी इसे पूरी तरह हल नहीं किया गया।

मुंबई की उदासीनता का भविष्य: क्या है समाधान?

मुंबई में मतदान की कम दर एक बड़ी चिंता का विषय है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इसे सुधारने के लिए केवल सुविधाएं बढ़ाना काफी नहीं है। लोगों में राजनीतिक प्रक्रिया के प्रति विश्वास बहाल करना और उनके मुद्दों को प्राथमिकता देना सबसे अहम है। मुंबई के मतदान में गिरावट (Decline in Mumbai Voting), अगर जारी रही, तो यह लोकतांत्रिक प्रणाली को कमजोर कर सकती है।


चुनाव 2024: मुंबईकरों के मतों की गूंज और उनकी खामोशी की कहानी

मुंबई का वोटिंग प्रतिशत (Mumbai Voter Turnout) और मुंबई में चुनावी उदासीनता (Mumbai Urban Apathy) जैसे मुद्दे केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं हैं। यह उस भावनात्मक disconnect को दिखाते हैं जो इस सपनों के शहर के नागरिकों और उनकी सरकार के बीच पनप गया है। अब समय आ गया है कि इस disconnect को खत्म कर हर नागरिक को अपनी आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया जाए।

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