NEET controversy: प्रतिवर्ष लाखों मेडिकल प्रवेशार्थियों के सपनों का फैसला करने वाली NEET परीक्षा इस बार विवादों में घिर गई है। आरोप लगे हैं कि इस बार परीक्षा आयोजन में कई अनियमितताएं हुईं और प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं रही। देशभर के छात्र और अभिभावक सड़कों पर उतर आए हैं और न्याय की गुहार लगा रहे हैं।
पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब रिजल्ट घोषित होने की तय तिथि से 10 दिन पहले ही परिणाम जारी कर दिए गए। इसके बाद आश्चर्यजनक रूप से 67 छात्रों को पूर्णांक 720 में से 720 अंक मिले। पिछले 5 सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ था। यही नहीं, इस बार टॉप रैंक हासिल करने के लिए चाहिए स्कोर भी बेतहाशा बढ़ा दिया गया। नतीजतन देश के टॉपर छात्रों का भविष्य भी अनिश्चित हो गया।
लेकिन इसके बाद तो विवादों का पुलिंदा लगातार बढ़ता ही गया। कई केंद्रों से रिपोर्ट आई कि छात्रों को पेपर देने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया। साथ ही ग्रेस मार्क्स प्रक्रिया में भी पारदर्शिता नहीं बरती गई। कुछ छात्रों को तो फटी हुई OMR शीट ही मिल गई। इतना ही नहीं, पेपर लीक होने के भी आरोप लगे हैं।
एक छात्रा ने तो यहां तक कहा कि उसका रिजल्ट ही शो नहीं हो रहा है। उसकी दलील है कि उसके रोल नंबर पर अंक नहीं दिखा रहे हैं। ऐसी कई और रिपोर्ट सामने आईं जिनसे परीक्षा की विश्वसनीयता पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लग गया।
इन सभी विवादों के बाद छात्रों ने राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संगठन NTA के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है। सोशल मीडिया पर भी काफी हंगामा हुआ। अब तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। कोर्ट में याचिकाएं दायर कर रीएग्जाम की मांग की जा रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे में ये आवश्यक हो गया है कि तटस्थ एजेंसी से पूरी परीक्षा प्रक्रिया की जांच कराई जाए। केवल निष्पक्ष जांच के बाद ही इस विवाद का समाधान निकल सकेगा। जांच रिपोर्ट के आधार पर ही तय किया जा सकेगा कि क्या रीएग्जाम की जरूरत है।
निस्संदेह पूरा मामला बहुत ही गंभीर है। एक ओर तो लाखों छात्रों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं, वहीं दूसरी ओर देश के मेडिकल शिक्षा प्रणाली की साख भी दांव पर लगी हुई है। ऐसे में निष्पक्ष जांच की मांग पूरी तरह उचित है। देश के विभिन्न हिस्सों से आई रिपोर्टों को देखते हुए ये स्पष्ट है कि सरकार और NTA को इस मसले को गंभीरता से लेना होगा।
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