मुंबई: मीठी नदी आज भी मुंबईकरों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है। पिछले 19 सालों में इस नदी के विकास पर 1650 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन फिर भी मुंबई में बाढ़ का खतरा टला नहीं है। यह स्थिति शहर के विकास और प्रशासन पर कई सवाल खड़े करती है।
साल 2005 में मीठी नदी ने जब अपना रौद्र रूप दिखाया था, तब मुंबई का आधा हिस्सा पानी में डूब गया था। उस भयानक आपदा के बाद सरकार ने नदी के विकास के लिए कई योजनाएं बनाईं। ब्रिमस्टोवाड नाम की एक बड़ी परियोजना शुरू की गई, जिसका मकसद था मीठी, पोइसर, दहिसर और ओशिवारा नदियों को चौड़ा करना। इस योजना पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन आज भी इन नदियों की हालत में कोई खास सुधार नजर नहीं आता।
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली द्वारा जुटाए गए आंकड़े चौंकाने वाले हैं। उनके मुताबिक, सिर्फ मीठी नदी के विकास पर महाराष्ट्र महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) ने 417.51 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इसके अलावा, मुंबई नगर निगम ने भी इसी तरह की योजनाओं के लिए 1239.60 करोड़ रुपये मांगे थे। कुल मिलाकर 1650 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि मीठी नदी पर खर्च की जा चुकी है।
इतनी बड़ी रकम खर्च होने के बावजूद नदी की हालत में कोई खास बदलाव नहीं आया है। आज भी मीठी नदी कचरे और गंदगी से भरी हुई है। नदी के किनारों पर अवैध कब्जे की समस्या भी जस की तस बनी हुई है। इन सब कारणों से बारिश के मौसम में पानी की निकासी बाधित होती है और शहर में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो जाती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए तो मुंबई में एक और बड़ी आपदा आ सकती है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इतने पैसे खर्च होने के बाद भी कोई ठोस नतीजे सामने नहीं आए हैं। न तो नदी साफ हुई है और न ही उसके किनारों से अतिक्रमण हटाया गया है।
इस पूरे मामले में पारदर्शिता की कमी भी एक बड़ा मुद्दा है। किसी को पता नहीं है कि इतना पैसा आखिर खर्च कहां हुआ है। न तो मुंबई नगर निगम ने और न ही एमएमआरडीए ने अब तक कोई विस्तृत रिपोर्ट जारी की है जिसमें पैसों के इस्तेमाल का ब्यौरा दिया गया हो।
मीठी नदी की यह दुर्दशा मुंबई शहर के विकास पर एक बड़ा सवालिया निशान है। यह स्पष्ट करता है कि सिर्फ पैसा खर्च करने से समस्याएं हल नहीं होतीं। जरूरत है सही योजना बनाने की और उसे ईमानदारी से लागू करने की। अगर जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए तो मुंबई के लोगों को हर बारिश के मौसम में बाढ़ का डर सताता रहेगा।
मुंबई की जल निकासी व्यवस्था में नदियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। आमतौर पर बारिश का पानी नालियों के जरिए इन्हीं नदियों में पहुंचता है और फिर समुद्र में चला जाता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में इन नदियों की हालत बिगड़ती गई है। अतिक्रमण और कचरे के ढेर के कारण ये नदियां अब नालों में तब्दील हो गई हैं। नदियों की तली ऊंची हो गई है, जिससे पानी की निकासी में बाधा आती है।
26 जुलाई, 2005 की भयानक बाढ़ के बाद यह मुद्दा गंभीरता से उठाया गया था। तब से अब तक कई योजनाएं बनीं और हजारों करोड़ रुपये खर्च किए गए। लेकिन जमीनी हकीकत में कोई बदलाव नहीं आया। यह स्थिति सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है।
मुंबई के लोग अब इस स्थिति से त्रस्त हो चुके हैं। हर बारिश के मौसम में उन्हें बाढ़ का डर सताता है। शहर की आर्थिक गतिविधियां भी इससे प्रभावित होती हैं। लोगों का मानना है कि उनके टैक्स के पैसे का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है। वे चाहते हैं कि सरकार इस मामले में गंभीरता से कदम उठाए और मीठी नदी सहित शहर की सभी नदियों को साफ करे।
कई विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों का मानना है कि मीठी नदी की समस्या का समाधान सिर्फ सरकारी प्रयासों से नहीं हो सकता। इसके लिए जनभागीदारी भी जरूरी है। लोगों को भी यह समझना होगा कि नदियों में कचरा फेंकना या उनके किनारों पर अवैध कब्जा करना कितना नुकसानदायक है। जब तक लोग अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगे, तब तक कोई भी सरकारी योजना सफल नहीं हो सकती।
मीठी नदी की यह दुर्दशा मुंबई के विकास के मॉडल पर भी सवाल खड़े करती है। यह स्पष्ट करती है कि विकास का मतलब सिर्फ बड़ी-बड़ी इमारतें और चौड़ी सड़कें बनाना नहीं है। असली विकास तभी होगा जब शहर की बुनियादी समस्याओं का समाधान किया जाएगा और लोगों को बेहतर जीवन की सुविधाएं मिलेंगी।
अंत में, यह कहा जा सकता है कि मीठी नदी की समस्या मुंबई के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसका समाधान तभी संभव है जब सरकार, प्रशासन और आम जनता मिलकर काम करें। जरूरत है एक ठोस योजना की, जिसे ईमानदारी से लागू किया जाए। तभी मुंबई के लोग बाढ़ के डर से मुक्त हो पाएंगे और शहर सच्चे अर्थों में विकसित कहला सकेगा।
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