मद्रास उच्च न्यायालय में हाल ही में एक ऐसी घटना घटी, जिसने न्यायपालिका और आम जनता को हैरान कर दिया। एक वकील ने अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए वेश्यालय चलाने के लिए सुरक्षा की मांग की। यह अजीबोगरीब याचिका सुनते ही न्यायमूर्ति बी पुगलेंधी की पीठ को गुस्सा आ गया और उन्होंने वकील पर जुर्माना लगाते हुए उससे उसकी डिग्री दिखाने को कहा।
यह मामला कन्याकुमारी के नागरकोइल शहर का है, जहां एक वकील वेश्यालय चला रहा था। पुलिस ने इस वकील के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। अपने ऊपर दर्ज हुई इस एफआईआर को रद्द कराने के लिए वह वकील कोर्ट पहुंचा। लेकिन वहां उसने जज से एक अजीब मांग कर डाली। उसने वेश्यालय चलाने के लिए सुरक्षा की मांग की। वकील का तर्क था कि उसे और उसके ग्राहकों को पुलिस की कार्रवाई से बचाने के लिए सुरक्षा दी जानी चाहिए, ताकि उसका धंधा ठीक से चल सके।
वकील की इस मांग को सुनते ही न्यायमूर्ति बी पुगलेंधी बहुत नाराज हो गए। उन्होंने तुरंत याचिका को खारिज कर दिया और वकील पर जमकर गुस्सा निकाला। इतना ही नहीं, पीठ ने वकील पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगा दिया। जज ने वकील की मांग को न सिर्फ बेतुका बताया, बल्कि उसकी नैतिकता पर भी सवाल उठाए।
इस घटना ने कानून व्यवस्था में कई गंभीर मुद्दों को उजागर किया है। सबसे पहला मुद्दा यह है कि एक वकील, जो कानून का जानकार होता है, खुद ही कानून तोड़ रहा था। दूसरा, वह अपने गैरकानूनी काम के लिए कोर्ट से सुरक्षा मांग रहा था, जो कि पूरी तरह से अनुचित है। इससे कानूनी पेशे की गरिमा पर सवाल उठ रहे हैं।
इस मामले में कोर्ट ने राज्य बार काउंसिल को कुछ महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि बार काउंसिल को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वकीलों को केवल अच्छी और मान्यता प्राप्त संस्थाओं से ही पढ़ाई करके आना चाहिए। साथ ही, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और अन्य राज्यों के कम प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़कर आने वाले वकीलों पर रोक लगाने के निर्देश भी दिए गए हैं।
न्यायमूर्ति बी पुगलेंधी ने इस मामले पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि अब वह समय आ गया है जब बार काउंसिल को यह समझना होगा कि वकीलों की नैतिकता और उनकी इज्जत कितनी जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में बार काउंसिल को कड़े कदम उठाने चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
यह घटना हमें बताती है कि कानून के क्षेत्र में भी कुछ लोग नैतिकता और कानून के नियमों को भूल जाते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि वकीलों की योग्यता और नैतिकता को सुनिश्चित करने के लिए कड़े नियम और दिशा-निर्देशों की जरूरत है। मद्रास उच्च न्यायालय ने इस मामले में सख्त रुख अपनाकर एक अच्छा संदेश दिया है कि कानून और नैतिकता के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
इस तरह की घटनाएं समाज में कानून व्यवस्था के प्रति लोगों के विश्वास को कम कर सकती हैं। इसलिए यह जरूरी है कि ऐसे मामलों पर तुरंत और कड़ी कार्रवाई की जाए। साथ ही, वकीलों के लिए नैतिक शिक्षा और प्रशिक्षण पर भी ध्यान देने की जरूरत है, ताकि वे अपने पेशे की गरिमा को बनाए रख सकें और समाज में एक अच्छा उदाहरण पेश कर सकें।
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