मुंबई के एक हालिया फैसले ने भारतीय कानून और समाज में महिलाओं के अधिकारों को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। बम्बई हाई कोर्ट ने 23 वर्षीय अविवाहित महिला गर्भपात (Unmarried Woman Abortion) का मामला सुना, जहां महिला ने 21 हफ्ते की प्रेगनेंसी को खत्म करने की इजाजत मांगी थी। कोर्ट के इस फैसले ने कई सवाल खड़े किए हैं, खासकर उन कानूनों को लेकर जो अविवाहित महिलाओं के लिए गर्भपात की अनुमति से जुड़े हैं।
महिला का मामला: क्यों मांगी गई गर्भपात की इजाजत?
यह मामला तब शुरू हुआ जब 23 साल की अविवाहित महिला ने अविवाहित महिला गर्भपात (Unmarried Woman Abortion) के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। महिला का कहना था कि उसने सहमति से शारीरिक संबंध बनाए थे, जिसके परिणामस्वरूप वह गर्भवती हो गई। लेकिन आर्थिक और निजी कारणों की वजह से वह बच्चे का पालन-पोषण नहीं कर सकती थी।
सितंबर 2024 में, जब महिला 21 हफ्ते की गर्भवती थी, तो उसे राज्य संचालित जेजे अस्पताल में यह सुझाव दिया गया कि वह गर्भपात के लिए कोर्ट की अनुमति प्राप्त करे। इसके बाद महिला ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की।
कोर्ट का फैसला: महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा
बम्बई हाई कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सारंग कोटवाल और न्यायमूर्ति नीला गोखले शामिल थे, ने इस मामले की सुनवाई की। राज्य सरकार ने इस याचिका का विरोध किया था, यह तर्क देते हुए कि याचिकाकर्ता उन महिलाओं की निर्दिष्ट श्रेणी में नहीं आती जिन्हें 20 हफ्ते से अधिक की गर्भावस्था खत्म करने की इजाजत दी जा सकती है।
लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि ऐसी व्याख्या गर्भपात की इजाजत कोर्ट से (Abortion Permission from Court) अविवाहित महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण होगी और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करेगी, जो समानता के अधिकार की गारंटी देता है। कोर्ट का मानना था कि विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच इस तरह का भेदभाव करना गलत है, खासकर जब मामला गर्भपात से जुड़ा हो।
कानूनी परिप्रेक्ष्य: क्या कहता है कानून?
भारत में गर्भपात से जुड़े मामलों में मुख्य कानून ‘गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम’ (Medical Termination of Pregnancy Act – MTPA) है। इसके तहत, सामान्य रूप से 20 हफ्ते की गर्भावस्था तक ही गर्भपात की अनुमति होती है। हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे यौन उत्पीड़न पीड़िताओं, नाबालिगों, विधवाओं, तलाकशुदा महिलाओं, शारीरिक या मानसिक रूप से दिव्यांग महिलाओं, या भ्रूण में असामान्यताओं के मामले में यह सीमा 24 हफ्ते तक बढ़ाई जा सकती है।
महिला का मामला, हालांकि, इन श्रेणियों में नहीं आता था, लेकिन उसकी आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने फैसला दिया कि उसे गर्भपात की इजाजत मिलनी चाहिए। यह एक ऐसा फैसला है जो यह स्पष्ट करता है कि गर्भपात की इजाजत कोर्ट से (Abortion Permission from Court) केवल कुछ विशेष परिस्थितियों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि महिलाओं की व्यक्तिगत परिस्थितियों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
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