सुभाष दांडेकर, जिन्होंने भारतीय बच्चों के लिए प्रसिद्ध कैमलिन जियोमेट्री बॉक्स का निर्माण किया, का हाल ही में निधन हो गया। वे कुछ समय से बीमार थे और हिंदुजा अस्पताल में उपचार के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके अंतिम संस्कार में परिवार के सदस्यों, कैमलिन समूह के कर्मचारियों और उद्योग जगत के कई प्रमुख व्यक्तियों ने भाग लिया। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि मराठी उद्योग जगत ने एक महान व्यक्तित्व को खो दिया है।
कैमलिन की कहानी 1931 में शुरू हुई, जब दिगंबर परशुराम दांडेकर ने अपने भाई गोविंद दांडेकर के साथ मिलकर दांडेकर एंड कंपनी के नाम से एक व्यवसाय शुरू किया। दिगंबर, जो रसायन विज्ञान के स्नातक थे, ने लेखन स्याही बनाने का काम शुरू किया। उन्होंने स्याही पाउडर बेचना आरंभ किया, जो धीरे-धीरे लोकप्रिय होता गया। हालांकि, शुरुआती दिनों में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आयातित स्याही सस्ती थी, जबकि स्थानीय स्तर पर निर्मित स्याही महंगी पड़ती थी।
इन चुनौतियों के कारण दांडेकर को अपने व्यवसाय को अस्थायी रूप से बंद करने पर विचार करना पड़ा। लेकिन उनके कुछ वफादार ग्राहकों ने उन्हें प्रोत्साहित किया और डिलीवरी जारी रखने का आग्रह किया। इस समर्थन ने कैमलिन को प्रारंभिक बाधाओं को पार करने में मदद की।
कैमलिन नाम की एक दिलचस्प कहानी है। कहा जाता है कि डी.पी. दांडेकर ने एक ईरानी कैफे में कैमल सिगरेट का एक पोस्टर देखा, जिस पर लिखा था, “मैं एक कैमलिन के लिए एक मील चलूंगा।” इससे प्रेरित होकर उन्होंने कंपनी के प्रतीक को घोड़े से बदलकर ऊंट कर दिया और 1908 में कंपनी का नाम आधिकारिक तौर पर कैमलिन रख दिया गया।
1960 के दशक में, सुभाष दांडेकर ने कंपनी को एक नई दिशा दी। उन्हें कला सामग्रियों में विविधता लाने की प्रेरणा मिली। यह प्रेरणा 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद आई, जब एक कलाकार को गांधी जी का चित्र बनाने के लिए विंसर न्यूटन रंग और कैनवास दिए गए। सुभाष दांडेकर ने महसूस किया कि भारतीय बाजार के लिए स्वदेशी कला सामग्री की आवश्यकता है।
इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए, सुभाष दांडेकर ने ग्लासगो में रंग रसायन विज्ञान की शिक्षा ली। वापस आकर उन्होंने एक प्रयोगशाला स्थापित की और कलाकारों तथा छात्रों के लिए विभिन्न प्रकार की कला सामग्री बनाना शुरू किया। इनमें तेल और पानी के रंग, पोस्टर रंग, मोम क्रेयॉन, तेल पेस्टल और पानी के रंग केक शामिल थे। ये उत्पाद 1962 में बाजार में पेश किए गए और जल्द ही कार्टूनिस्टों और डिजाइनरों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए।
सुभाष दांडेकर ने अपनी मेहनत, दूरदर्शिता और नवोन्मेषी दृष्टिकोण से कैमलिन को एक प्रमुख ब्रांड बना दिया। उन्होंने न केवल एक सफल व्यवसाय का निर्माण किया, बल्कि भारतीय बच्चों और कलाकारों के लिए गुणवत्तापूर्ण कला सामग्री उपलब्ध कराई। उनका जियोमेट्री बॉक्स लाखों भारतीय स्कूली बच्चों के लिए एक पहचान बन गया।
सुभाष दांडेकर के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। उनके द्वारा स्थापित विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी। उन्होंने दिखाया कि दृढ़ संकल्प, नवाचार और गुणवत्ता पर ध्यान देकर कैसे एक छोटे व्यवसाय को एक राष्ट्रीय ब्रांड में बदला जा सकता है। कैमलिन की सफलता की कहानी भारतीय उद्यमिता की एक प्रेरक गाथा है, जो आने वाले समय में भी लोगों को प्रेरित करती रहेगी।
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