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Eco-Friendly Shadu Clay Idols: मुंबई में गणेश उत्सव 2025; शाडू मिट्टी से बनी मूर्तियों का बढ़ता चलन, BMC ने बांटी 630 टन मिट्टी

Eco-Friendly Shadu Clay Idols: मुंबई में गणेश उत्सव 2025; शाडू मिट्टी से बनी मूर्तियों का बढ़ता चलन, BMC ने बांटी 630 टन मिट्टी

Eco-Friendly Shadu Clay Idols: मुंबई में गणेश उत्सव की तैयारियां इस बार पर्यावरण के प्रति जागरूकता के साथ एक नया रंग ले रही हैं। हर साल की तरह इस बार भी भगवान गणेश के स्वागत की धूम है, लेकिन इस बार एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP) से बनी मूर्तियों पर प्रतिबंध के कारण, करीब 40% मूर्तिकार अब शाडू मिट्टी (Shadu Clay) और अन्य पर्यावरण-अनुकूल सामग्रियों का उपयोग कर रहे हैं। यह बदलाव न केवल पर्यावरण की रक्षा के लिए है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि मुंबईवासी अपनी परंपराओं को आधुनिक और जिम्मेदार तरीके से निभाने के लिए तैयार हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे मुंबई गणेश उत्सव को पर्यावरण के अनुकूल (Eco-Friendly Ganesh Festival) बना रहा है और बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) इस दिशा में क्या कदम उठा रही है।

मुंबई का गणेश उत्सव देश-विदेश में अपनी भव्यता के लिए मशहूर है। हर साल लाखों लोग इस त्योहार में शामिल होते हैं, और सड़कों पर रंग-बिरंगे पंडाल और गणेश मूर्तियों की रौनक देखने लायक होती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से पर्यावरण पर मूर्ति विसर्जन के प्रभाव को लेकर चिंता बढ़ रही है। खासकर प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियां, जो पानी में आसानी से घुलती नहीं हैं, समुद्र और नदियों को प्रदूषित करती हैं। इस समस्या को देखते हुए, BMC ने PoP मूर्तियों पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू किया है। इस साल, इस प्रतिबंध में कोई ढील नहीं दी गई है, जिसके चलते मूर्तिकारों ने शाडू मिट्टी का रुख किया है। शाडू मिट्टी प्राकृतिक और घुलनशील होती है, जो पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती।

BMC ने इस बदलाव को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इस साल, उन्होंने मूर्तिकारों को मुफ्त में 630 टन शाडू मिट्टी वितरित की है, जो पिछले साल की तुलना में काफी अधिक है। पिछले साल BMC ने 619 टन मिट्टी दी थी, जबकि 2023 में यह मात्रा 451 टन थी। इस बार सबसे ज्यादा मिट्टी धारावी, माहिम और दादर जैसे जी नॉर्थ वार्ड में वितरित की गई है, जहां 85 टन मिट्टी दी गई। इसके अलावा, घाटकोपर में 70 टन, अंधेरी पूर्व में 67 टन, और गिरगांव, चिंचपोकली, लालबाग और हिंदमाता जैसे क्षेत्रों में 56 टन मिट्टी दी गई है। यह प्रयास दर्शाता है कि BMC न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दे रही है, बल्कि मूर्तिकारों को आर्थिक सहायता भी प्रदान कर रही है।

मुंबई में गणेश उत्सव के आयोजकों के लिए BMC ने विशेष व्यवस्था की है। गणेश मूर्तियों के लिए विशेष स्थानों को निर्धारित किया गया है, जो पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर आवंटित किए जा रहे हैं। इससे पंडालों की व्यवस्था में पारदर्शिता और सुगमता बनी रहेगी। हालांकि, कुछ बड़े गणेशोत्सव मंडलों के लिए चुनौती बनी हुई है। कई मंडल 18 फीट से ऊंची मूर्तियां स्थापित करते हैं, जिन्हें शाडू मिट्टी से बनाना मुश्किल होता है। शाडू मिट्टी नाजुक होती है और बड़े आकार की मूर्तियों के लिए मजबूत ढांचा चाहिए। फिर भी, कई मूर्तिकार इस चुनौती को स्वीकार कर रहे हैं और नई तकनीकों के साथ पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियां बना रहे हैं।

मुंबई के मूर्तिकार और गणेशोत्सव के आयोजकों का संगठन, बृहन्मुंबई सार्वजनिक गणेशोत्सव समन्वय समिति, इस बदलाव का समर्थन कर रहा है। संगठन के अध्यक्ष नरेश दहिबावकर ने बताया कि PoP के उपयोग पर बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है, लेकिन समय की कमी के कारण कई मूर्तिकार पहले ही शाडू मिट्टी का उपयोग शुरू कर चुके हैं। उन्होंने यह भी कहा कि BMC वार्ड स्तर पर मूर्तियों की ऊंचाई का डेटा इकट्ठा कर रही है, जिसके आधार पर भविष्य में ऊंचाई की सीमा तय की जा सकती है। यह कदम सुनिश्चित करेगा कि पर्यावरण के साथ-साथ शहर की व्यवस्था भी प्रभावित न हो।

पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने में मूर्तिकारों की भूमिका भी अहम है। परंपरागत मूर्तिकार हस्तकला कारगीर संघ के अध्यक्ष अशोक कदु, जो पिछले पांच दशकों से मूर्तियां बना रहे हैं, कहते हैं कि PoP मूर्तियां न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि विसर्जन के बाद उनकी हालत देखकर मन को ठेस पहुंचती है। आधी घुली मूर्तियां तटों पर बिखरी रहती हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए दुखद होता है। अशोक ने बताया कि वे लंबे समय से पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियों के लिए जागरूकता फैला रहे हैं और अब कई युवा मूर्तिकार इस दिशा में काम कर रहे हैं।

मुंबई का यह प्रयास नई पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है। पर्यावरण-अनुकूल गणेश उत्सव (Eco-Friendly Ganesh Festival) न केवल परंपराओं को जीवित रखता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को प्रकृति के साथ संतुलन में रख सकते हैं। BMC ने कोंकण क्षेत्र के आयुक्तों को पत्र लिखकर वहां के मूर्तिकारों को भी शाडू मिट्टी अपनाने के लिए प्रेरित करने को कहा है। यह कदम पूरे महाराष्ट्र में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बड़ा बदलाव ला सकता है।

शाडू मिट्टी (Shadu Clay) का उपयोग बढ़ने से न केवल समुद्र और नदियां स्वच्छ रहेंगी, बल्कि मूर्तिकारों को भी अपनी कला को नया आयाम देने का मौका मिलेगा। युवा पीढ़ी, जो पर्यावरण के प्रति जागरूक है, इस बदलाव को खुलकर स्वीकार कर रही है। गणेश उत्सव का यह नया रूप मुंबई की पहचान को और मजबूत करेगा, जहां परंपरा और आधुनिकता का सुंदर संगम दिखाई देता है।

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