भारतीय सैनिकों की शौर्य गाथाओं में एक अहम नाम है – सरदार पोस्ट का युद्ध। कच्छ के रण में 1965 में, जब पाकिस्तान की पूरी ब्रिगेड ने हमला किया, तब CRPF के कुछ जवानों ने उन्हें अकेले ही 12 घंटे तक रोके रखा। कल यानी 9 अप्रैल को पूरे देश ने CRPF का ‘शौर्य दिवस’ मनाया और उन बहादुर शहीदों को याद किया।
आज हम जिन बड़ी सुरक्षा सेनाओं को जानते हैं, उनकी नींव ऐसे ही बलिदानों पर रखी गई है। सरदार पोस्ट की लड़ाई से पहले, भारत के पास केंद्रीय तौर पर नियंत्रित सीमा सुरक्षा बल नहीं था। इसी युद्ध से सबक लेकर दिसंबर 1965 में BSF (सीमा सुरक्षा बल) का गठन हुआ।
क्या हुआ था सरदार पोस्ट पर? 9 अप्रैल 1965 को पाकिस्तानी सेना ने कच्छ की सरदार पोस्ट पर हमला बोल दिया। पोस्ट की सुरक्षा में तैनात थी CRPF की दूसरी बटालियन। मुट्ठी भर जवानों ने पूरी पाकिस्तानी ब्रिगेड को 12 घंटे तक रोके रखा। इस लड़ाई में 34 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए, 4 को ज़िंदा पकड़ा گیا, जबकि CRPF के 6 जांबाज़ शहीद हो गए।
शौर्य दिवस की परंपरा: इस अदम्य साहस के सम्मान में, CRPF हर साल 9 अप्रैल को ‘शौर्य दिवस’ मनाती है। मुख्य कार्यक्रम कच्छ के रण में स्थित सरदार पोस्ट पर होता है, और दूसरा कार्यक्रम दिल्ली के राष्ट्रीय पुलिस स्मारक पर आयोजित किया जाता है।
CRPF अधिकारी का संदेश: इस साल शौर्य दिवस पर CRPF पश्चिमी कमान के आईजी शशिकांत उपाध्याय ने कहा, “ये दिन पूरे देश और खासकर हमारे लिए बहुत अहम है। सरदार पोस्ट की लड़ाई से ही शौर्य दिवस की शुरुआत हुई। ये कहानी हमारे देश के सभी सुरक्षाकर्मियों को प्रेरित करती है।”
सरदार पोस्ट का युद्ध हमें याद दिलाता है कि भारतीय सुरक्षाबलों का इतिहास बलिदान और अद्वितीय बहादुरी से भरा है। CRPF और BSF जैसे बल इसी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
सरदार पोस्ट के युद्ध में CRPF के जवानों को सेना के सबसे बड़े सम्मानों से नवाज़ा गया था।
आज कच्छ का रण एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है, जहां लोग सरदार पोस्ट देखने आते हैं।