देश के दो बड़े राज्य पश्चिम बंगाल और केरल इन दिनों एक बड़ी मुश्किल में फंसे हुए हैं। इन राज्यों की सरकारों ने कुछ कानून बनाने के लिए बिल पास किए थे, लेकिन वे बिल अभी तक मंजूर नहीं हुए हैं। इस मामले में अब देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार और दोनों राज्यों के राज्यपालों के दफ्तरों को एक चिट्ठी भेजी है। इस चिट्ठी में पूछा गया है कि आखिर क्यों इन बिलों को मंजूरी नहीं दी जा रही है। यह कदम सुप्रीम कोर्ट ने इसलिए उठाया क्योंकि दोनों राज्यों की सरकारों ने अदालत में इस बारे में शिकायत की थी।
केरल की तरफ से एक बड़े वकील केके वेणुगोपाल ने अदालत में कहा कि वे राज्यपाल के उस फैसले का विरोध कर रहे हैं, जिसमें बिलों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया था। उनका कहना है कि इससे कानून बनाने की प्रक्रिया में देरी हो रही है।
इस मामले की सुनवाई तीन बड़े जजों की टीम कर रही है। इस टीम में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी परिदवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं। इन्होंने केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय और दोनों राज्यों के राज्यपालों के दफ्तरों को चिट्ठी भेजी है।
केरल की तरफ से वकील वेणुगोपाल ने बताया कि राज्यपाल ने जो बिल राष्ट्रपति के पास भेजे हैं, उसका वे विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इससे राज्य में कानून बनाने की प्रक्रिया में देरी हो रही है और राज्य के विकास के काम रुक रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की तरफ से दो बड़े वकील अभिषेक सिंघवी और जयदीप गुप्ता ने अदालत को बताया कि जब भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आता है, राज्यपाल के दफ्तर से बिल राष्ट्रपति के पास भेज दिए जाते हैं। इससे बिलों की मंजूरी में और भी ज्यादा देर हो जाती है, जिसके कारण राज्य के जरूरी मुद्दों का हल नहीं हो पा रहा है।
दोनों राज्यों की सरकारों ने अदालत में अपनी शिकायत में कहा है कि राज्यपालों के इस तरह के फैसलों से राज्य में कानून बनाने की प्रक्रिया में रुकावट आ रही है। इससे राज्य के विकास के काम भी प्रभावित हो रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार और राज्यपालों के दफ्तरों से पूछा है कि आखिर क्यों इन बिलों को मंजूरी देने में इतनी देर हो रही है। अदालत ने कहा है कि इसके पीछे की वजहें बताई जानी चाहिए।
ये बिल राज्यों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। राज्य सरकारों का कहना है कि इन बिलों के मंजूर न होने से कई जरूरी योजनाओं और प्रोजेक्ट्स पर काम नहीं हो पा रहा है। इससे राज्य के लोगों को फायदा नहीं मिल पा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बहुत गंभीरता से लिया है। अदालत ने सभी संबंधित लोगों को चिट्ठी भेजकर जवाब मांगा है। अदालत का कहना है कि यह मामला राज्य सरकारों के कानून बनाने के अधिकार और केंद्र सरकार के फैसलों के बीच संतुलन बनाने का है। इसलिए इस पर ध्यान से विचार किया जाना चाहिए।
इस मामले में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार और राज्यपालों के दफ्तर क्या जवाब देते हैं। साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या फैसला लेता है। इस फैसले से न सिर्फ बंगाल और केरल, बल्कि पूरे देश में राज्यों और केंद्र के बीच के रिश्तों पर असर पड़ सकता है।
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