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बढ़ रहा है युवाओं में जैन धर्म अपनाने का चलन, जानिए क्या हैं वजहें

बढ़ रहा है युवाओं में जैन धर्म अपनाने का चलन, जानिए क्या हैं वजहें

जैन धर्म अहिंसा और मोक्ष जैसे सिद्धांतों के लिए जाना जाता है। आमतौर पर लोग अधेड़ या बुज़ुर्ग उम्र में सांसारिक सुखों को त्याग कर जैन धर्म में दीक्षा लेते हैं। लेकिन, आजकल कई युवा भी छोटी उम्र में ही दीक्षा लेकर साधु-साध्वी बनने का रास्ता चुन रहे हैं।

जैन धर्म में दीक्षा का मतलब है दुनिया की मोह-माया छोड़कर अपना जीवन धर्म और समाज की सेवा में लगाना। दीक्षा लेने के बाद व्यक्ति साधु या साध्वी बन जाता है और कठिन नियमों के साथ जीवन गुज़ारता है।

क्यों ले रहे हैं युवा दीक्षा?

  • धर्मगुरुओं का प्रभाव: जैन धर्म के कई साधु-साध्वी अपने प्रवचनों से युवाओं को बहुत प्रभावित करते हैं। इनके उपदेशों को सुनकर कई युवा दीक्षा लेने के लिए प्रेरित होते हैं।
  • सामूहिक दीक्षा समारोह: कई बार बड़े-बड़े सामूहिक दीक्षा समारोह होते हैं, जिनमें कई लोग एक साथ दीक्षा लेते हैं। इसमें कुछ युवा भी शामिल होते हैं।

हाल के कुछ उदाहरण

  • पिछले महीने गुजरात के एक बिज़नेसमैन ने अपनी पत्नी, बेटी और बेटे के साथ मिलकर करोड़ों की संपत्ति दान की और दीक्षा ले ली।
  • मुंबई के डोंबिवली में 9 साल के बच्चे ने अपने माता-पिता के साथ दीक्षा ग्रहण की।
  • इस साल मार्च में नवी मुंबई की एक 19 साल की लड़की ने साध्वी बनने का फैसला किया।

दीक्षा लेने वालों की संख्या बढ़ी है

मुंबई यूनिवर्सिटी में जैन धर्म के जानकार बिपिन दोशी कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में युवाओं में दीक्षा लेने का चलन बढ़ा है। उनका मानना है कि युवा, जैन गुरुओं की बातों और उनके त्याग से बहुत प्रभावित होते हैं।

जैन धर्म शांति और अहिंसा का रास्ता दिखाता है। आज की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में कई युवाओं को जैन धर्म की सादगी और त्याग का जीवन आकर्षित करता है। गुरुओं के मार्गदर्शन में वो अपना जीवन धर्म की राह पर लगाने को तैयार हो जाते हैं।

  • जैन धर्म की दो मुख्य शाखाएं हैं – श्वेतांबर और दिगंबर। ज़्यादातर युवा श्वेतांबर संप्रदाय में दीक्षा लेते हैं।
  • दीक्षा लेने के बाद साधु-साध्वी बहुत कठोर नियमों का पालन करते हैं। अब कई युवा साधु, धर्म का प्रचार करने के लिए लैपटॉप और सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल करने लगे हैं।
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