Crop Insurance Crackdown on Bogus Claims: महाराष्ट्र में खेती किसानों की आजीविका का आधार है, लेकिन प्राकृतिक आपदाओं और अप्रत्याशित मौसम ने उनकी मेहनत को बार-बार नुकसान पहुंचाया है। इसीलिए फसल बीमा (क्रॉप इंश्योरेंस/crop insurance) जैसी योजनाएं किसानों के लिए एक सहारा बनती हैं। लेकिन हाल ही में, महाराष्ट्र सरकार ने फसल बीमा योजना में धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की घोषणा की है। इस नए सरकारी आदेश ने न केवल फर्जी दावों (बोगस क्लेम्स/bogus claims) को रोकने का लक्ष्य रखा है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया है कि इस योजना का लाभ केवल वास्तविक किसानों को मिले।
पिछले साल, महायुति सरकार ने 2023 में 1 रुपये की फसल बीमा योजना शुरू की थी, जो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) का एक संशोधित रूप था। इस योजना का उद्देश्य था कि किसानों को नाममात्र प्रीमियम पर बीमा उपलब्ध हो। इस कदम से आवेदनों की संख्या में जबरदस्त उछाल आया। 2022 में जहां 1.04 करोड़ आवेदन आए थे, वहीं 2023 में यह संख्या बढ़कर 2.42 करोड़ हो गई। लेकिन इस लोकप्रियता के साथ एक बड़ी समस्या भी सामने आई। इस साल की शुरुआत में, चार लाख से अधिक आवेदन फर्जी पाए गए। कई दावे उन जमीनों के लिए किए गए थे, जहां कोई फसल बोई ही नहीं गई थी। कुछ दावे मंदिरों, मस्जिदों, पेट्रोल पंपों और यहां तक कि एमआईडीसी के औद्योगिक क्षेत्रों की जमीनों के लिए भी थे।
इस धोखाधड़ी को देखते हुए, सरकार ने अप्रैल 2024 में 1 रुपये की फसल बीमा योजना (crop insurance/फसल बीमा) को रद्द कर दिया और मूल प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को फिर से लागू किया। इस योजना के तहत, किसानों को खरीफ फसलों के लिए 2 प्रतिशत, रबी फसलों के लिए 1.5 प्रतिशत और वाणिज्यिक या बागवानी फसलों के लिए 5 प्रतिशत प्रीमियम देना होगा। लेकिन इस बदलाव के साथ ही सरकार ने फर्जी दावों (bogus claims/बोगस क्लेम्स) को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए। मंगलवार को जारी एक सरकारी आदेश में कहा गया कि जो भी फर्जी दावे दर्ज करेगा—चाहे वह किसान हो, कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) ऑपरेटर हो या कोई और—उसके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा, दोषी को पांच साल तक सभी सरकारी योजनाओं और सब्सिडी से वंचित कर दिया जाएगा।
इस धोखाधड़ी को उजागर करने के लिए सरकार ने पहले ही 140 सीएससी आईडी को ब्लॉक कर दिया था, जो फर्जी दावों से जुड़े थे। साथ ही, कृषि आयुक्त रावसाहेब भागड़े की अध्यक्षता में एक 25 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति बनाई गई थी, जिसने इस योजना के दुरुपयोग का अध्ययन किया। इस समिति ने 1 रुपये की योजना को खत्म करने और मूल पीएमएफबीवाई को लागू करने की सिफारिश की। समिति ने यह भी पाया कि कई मामलों में दावे उन जमीनों के लिए किए गए थे, जिनके 7/12 दस्तावेजों में किसान का नाम ही नहीं था। कुछ लोग बिना हिस्सेदारी या बिना सहमति के दूसरों की जमीन पर बीमा ले रहे थे। इस तरह की गड़बड़ियों को रोकने के लिए सरकार ने अब सख्त नियम लागू किए हैं।
सरकारी आदेश में यह भी कहा गया कि अगर कोई दावा फर्जी जमीन रिकॉर्ड या गलत फसल डेटा के आधार पर किया गया, तो उसे धोखाधड़ी माना जाएगा। इसके लिए तहसीलदार के माध्यम से सख्त कार्रवाई की जाएगी। दोषी को न केवल कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा, बल्कि उसे पांच साल तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलेगा। इसके अलावा, राजस्व विभाग को निर्देश दिए गए हैं कि ऐसे मामलों को आधिकारिक रिकॉर्ड में अलग से दर्ज किया जाए। यह कदम सुनिश्चित करता है कि धोखाधड़ी करने वालों को आसानी से पकड़ा जा सके और भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
यह सख्ती इसलिए जरूरी थी, क्योंकि फर्जी दावों ने न केवल योजना की विश्वसनीयता को प्रभावित किया, बल्कि उन वास्तविक किसानों को भी नुकसान पहुंचाया, जिन्हें इस बीमा की सख्त जरूरत थी। उदाहरण के लिए, गड़चिरोली और अमरावती जैसे जिलों में, जहां किसान पहले से ही सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहे हैं, फर्जी दावों की वजह से बीमा राशि का सही वितरण नहीं हो पा रहा था। इन क्षेत्रों में कई किसानों ने बताया कि उन्हें समय पर मुआवजा नहीं मिला, क्योंकि फर्जी दावों ने बीमा कंपनियों और सरकार के संसाधनों पर अनावश्यक दबाव डाला।